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________________ श्री आत्माराम जी महाराज थे, जिन्होंने २० आगमों पर टीकायें लिखी हैं। इस शास्त्र की भी विस्तृत संस्कृत टीका पदार्थान्वय, मूलार्थ, हिन्दी टीका मेरे पितामह श्रमण-संघ के प्रथम पट्टधर आचार्य भगवान श्री श्री १००८ पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज ने आज से ४५ वर्ष पहले लिखा था। कुछ विशिष्ट एवं अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण यह शास्त्र तब प्रकाशित न हो सका। मुझे प्रसन्नता है कि श्रमण संघ की उपप्रवर्तिनी जिनशासन-प्रभाविका, आगम-वेत्ता, जैनज्योति, पंजाबी जैन साहित्य की प्रेरिका साध्वी श्री स्वर्ण कान्ता जी महाराज ने इस शास्त्र के सम्पादन का गुरुतर भार अपने ऊपर लिया है। उन्होंने परम श्रद्धेय आचार्य श्री के शिष्य गुरुतुल्य पूज्य श्री रत्न मुनि जी महाराज जी से यह अमूल्य निधि प्राप्त की। फिर अपने निर्देशन में एक सम्पादक-मण्डल का निर्माण किया। इस सम्पादक मण्डल के सभी नाम मेरे लिये नये नहीं । धर्म-भ्राता पुरुषोत्तम जैन, रविन्द्र जैन को पंजाबी जैन साहित्य के लेखक के रूप में कौन नहीं जानता ? पच्चीसवीं महावीर निर्वाण शताब्दो समिति पंजाब के वे संस्थापक हैं। जैन चेयर, आचार्य आत्माराम भाषण माला के संस्थापक हैं। मैं इन दोनों धर्म के प्रति समर्पित प्रात्मानों को अपने साधु-जीवन के आरम्भ से ही जानता हूं। पंजाबी विश्वविद्यालय में मेरी पी. एच -डी की हर समस्या इन्होंने स्वयं हल की थी। यह दोनों प्रिय श्रावक हैं जो देवगुरु धर्म के प्रति समर्पित हैं। तीसरा नाम श्री तिलकधर शास्त्री जी का है। इनका सारा जीवन जैन एकता, जैन धर्म एवं जैन साहित्य के लिये समर्पित है। पिछले २५ वर्षों से आत्म-रश्मि पत्रिका के सम्पादक के रूप में इन्हें हर जैन विद्वान जानता है, पहचानता है । मेरे पितामह आचार्य श्री आत्माराम जी के स्थानांग सूत्र के बृहत् सम्पादन का श्रेय पजाब-प्रवर्तक उपाध्याय श्रमण श्री फूलचन्द्र जी महाराज के निर्देशन में इन्हें ही प्राप्त हुआ है। आप कवि, श्रेष्ठ अनुवादक, संस्कृत प्राकृत, हिन्दी भाषा के ज्ञाता विद्वान् हैं । अनेकों पुस्तकों का सम्पादन आपके द्वारा सम्पन्न हो चुका है। चतुर्थ नाम है-साध्वी श्री स्मृति जी (एम. ए.) का है जो मुख्य सम्पादिका श्री स्वर्ण कान्ता जी. महाराज की पौत्री शिष्या हैं। इसी वर्ष आप कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एम. ए. को परीक्षा में सारे हरियाणा में प्रथम रही हैं । नव-दीक्षता यह श्रमणी आगे भी जिनशासन की इसी तरह प्रभावना करती रहे, मैं ऐसी अपनी मंगल कामनायें व साधुवाद इनको प्रेषित करता हूं। सम्पादक मण्डल हमारे आशीर्वाद का पात्र है। ____ अतः मैं अपनी ओर से इस महत्त्वपूर्ण कार्य के सम्पन्न होने के शुभ अवसर पर मुख्य सम्पादिका महाश्रमणी श्री स्वर्ण कान्ता जी महाराज व उनके समस्त सम्पादक-मण्डल को उनको इस कार्य के लिए साधुवाद देता हुआ मंगलमय शुभ कामनाएं प्रेषित करता हूं। इस प्रकाशन के लिये प्रकाशन संस्था के प्रमुख श्री पुरुषोत्तम जैन, श्री रवीन्द्र जैन व उनका सहयोगी वर्ग भी साधुवाद के पात्र हैं। २० दिसम्बर १९९३ -युवाचार्य डा० शिव मुनि, मद्रास [ ग्यारह ] ..
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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