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निरयावलिका)
[वर्ग-प्रयम
• अनेतुं दूत प्रेषयितुम् । एवं सप्रेक्षते, संप्रेक्ष्य दूतं शब्दयति, शब्दयित्वा एवम वादीत्-गच्छ खलु त्व देवाणप्रिय ! वैशाली नगरी, तत्र खलु त्वं मम आर्य चेटकं राजानं करतल० बर्द्धयित्वा एवं वद-एवं खलु स्वामिन् ! कूणिको राजा विज्ञापयति-एवं खलु वेहल्लः कुमारः कूणिकस्य राज्ञः असविदितेन सेचन गन्धहस्तिनमष्टादशवक्र'चहारंगहीत्वा इह हव्यमागतः, ततः खल ययं स्वामिन! कणिक राजानमनुगृह्णन्तः सेचनक गन्धहस्तिनमष्टादशवकच हारं कणिकस्य राज्ञः प्रत्यर्पयत, बैहल्ल्यं कुमार च प्रषयत ॥६५॥
पदार्थान्त्रय-तएणं-तत्पश्चात् , से कृणिए राया-वह कोणिक राजा, इमोसे कहाए लद्धट्टे समाणे- इस चर्चा के लब्धार्थ होने पर, एवं खलु-निश्चय ही इस प्रकार, वेहल्ले कुमारेवेहल्ल कुमार,. ममं-मुझे, असंविदितेणं-बिना बताये ही, सेयणगं गन्ध हत्थि अट्ठारसबंक च हारं सेचनक गन्धहस्ती और अठारह लड़िया वाले हार को, गहाय-ग्रहण करके, अंतेउरपरियालसंपारवडे-अन्तःपुर के परिवार से घिरा हुआ, जाव-यावत्, अज्जयं चेडयं रायंनाना आर्य चेटक राजा को, उवसंपज्जिताण-शरण ग्रहण करता हुआ, विहरइ-विचरता है, त सेयं खल- तो निश्चय ही यही श्रेष्ठ है, मम सेयणगं गन्धहत्थि--मेरे सेचनक गन्धहस्ती को, चऔर, अट्ठारसबकं च हार-अठारह लड़ियों वाले रत्न हार को वापिस मंगवाने के लिये, दूयं सित्तए-दूत भेजना चाहिये, एवं संपेहेइ, संहिता-इस प्रकार विचारता है और विचार कर, दूयं सद्दावेइ, सद्दावेइत्ता-दूत को बुलाता है और बुलाकर, एवं वयासी-इस प्रकार बोला, गच्छह नं तुम देवाणप्पिया-हे देवानुप्रिय ! तुम जाओ, वेसालि नरि-वैशाली नगरी को, तत्थ णंवहां पर, तुम अज्जं चेडयं रायं-तुम मेरे नाना आर्य चेटक को, करयल बद्धावेत्ता-दोनों हाथ जोडकर और वधाई देकर, एवं वयासी-इस प्रकार कहना, एवं खल सामी-हे स्वामी निश्चय ही इस प्रकार, कूणियस्स राया विनवेइ-कोणिक राजा विनती करता है कि, एस णं वेहल्ले कुमारे-यह वेहल्ल कुमार, कूणियस्स रन्नो- कूणिक राजा को, असंबिंदितेणं-बिना बताये हो, सेयणगन्धहत्थि अट्ठारसबंकं च हारं-सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ियों वाले हार को, गहाय-ग्रहण करके हन्गमागए-शीघ्र ही यहां आ गया है, तएणं-तो, तन्भे सामी-हे स्वामी प्राप. कणियं रायं राजा कूणिक को, अणुगिरहमाणा - उस पर अनुग्रह (कृपा) करते हुए, अट्ठारसबंकं च हार-सेचनक गंधहस्ती को बोर अठारह लड़ियों के हार को, कूणियस्स रन्नो पच्चप्पिणह-कोणिक राजा को वापिस कर दो, च-और, वेहल्लं कुमारं च पेसह-बेहल्ल कुमार को वापिस भेज दो ॥६५।।
मूलार्थ-तत्पश्चात् राजा कोणिक को जब यह समाचार ज्ञात हुआ तो उसने विचार किया -इस प्रकार निश्चय ही वेहल्ल कुमार मुझे बिना बताये सेचनक गंधहस्ती व अठारह लड़ियों के हार को लेकर अंत:पुर के परिवार से घिरा हुआ यावत्