SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ग-प्रथम (११०) [ निरयावलिका हार तथा अपनी रानियों, खड्ग आदि हथियारों, दास-दासियों और रत्न आदि को और गृहोपयोगी समस्त बर्तन आदि लेकर (उपयुक्त अवसर पाते ही) चम्पा नगरी से बाहर निकल जाता है और बाहर निकल कर जिधर वैशाली नगरी थी उधर ही चल पड़ता है और चल कर वैशाली नगरी में जहां उसके नाना आर्य चेटक थे उनके पास पहुंचकर अपना जीवन व्यतीत करने लगता है ॥६४॥ टीका-प्रस्तुत सूत्र से ध्वनित होता है कि मनुष्य को जहां कोई व्यक्ति अपना शत्रु जान पड़े और जहां अपने को असुरक्षित समझे वहां से उसे चल देना चाहिये और किसी ऐसे सुरक्षित स्थान पर पहुंच जाना चाहिये जहां वह निर्भय होकर जीवन व्यतीत कर सके। मनुष्य को यथासम्भव ऐसे व्यक्ति के पास जाना चाहिये जो विश्वस्त हो, सबल हो और समय आने पर कुछ सहायता भी कर सके। अतः वेहल्ल कुमार अपने नाना के पास पहुंचा था जो सशक्त राजा थे॥६४।। मूल-तएणं से कूणिए राया इमोसे कहाए लद्धठे समाणे-एव खलु वेहल्ले कुमारे ममं असंविदितेणं सेयणगं गंधहत्थि . अठ्ठारसबंकं च हारं गहाय अंतेउरपरियालसंपविडे जाव अज्जयं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं सेयं खलु ममं सेयणगं गंधहत्यि अट्ठारसबंकं च हारं आणेलं दूयं पेसित्तए। एवं संपेहेइ, संपेहित्ता दूयं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी"गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! वेसालि नरिं, तत्थ णं तुम मम अज्जं चेडगं रायं करतल० वद्धावेत्ता एवं वयाहि-एवं खल सामी ! कणिए राया विन्नवेइ-एस णं वेहल्ले कुमारे कूणियस्स रन्नो असंविदितणं सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसबंकं च हारं गहाय इह हव्वमागए, तए णं तुन्भे सामी ! कूणियं रायं अणुगिण्हमाणा सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसवंकं च हारं कूणियस्स रन्नो पच्चप्पिणह, वेहल्लं कुमारं च पेसेह ॥६५॥ छाया-ततः खलु स कूणिको राजा अस्याः कथाया लब्धार्थः सन् ‘एवं खलु वेहल्ल्लः कुमारो मम असंविक्तेिन सेचनकं गन्धहस्तिनमाटावशवकच हारं गृहीत्वा अन्तःपुरपरिवारसंपरिवृतो यावद् मार्य राजानमुपसंपद्य खलु विहरति, सईया खलु मम सेचनकं मन्धहस्तिनमष्टादशवकच हारम् ,
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy