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निरयावलिका]
[वर्ग प्रथम
को राज्य की जगह वनवाम मिला । पद्मावती देवी का त्रिया-हठ रथ-मुसल-संग्राम का कारण बना।
राजा कोणिक पद्मावती पर पूर्ण रूप से आसक्त था, इसी कारण वह अपनी रानी की बात को टाल न सका। उसने अपनी रानी के कहने पर अपने भाइयों से दोनों वस्तुओं को ले लेने का निश्चय कर लिया।
मूल-तएणं से वेहल्ले कुमारे अन्नया कयाई कूणियस्स रन्नो अंतरं जागइ जाणित्ता, सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसबंकं च हारं गहाय अंतेउरपरियालसंपरिवडे सभंडमत्तोवगरणमायाए चंपाओ नयरीओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव साली नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेसालीए नयरीए अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥६४॥
छाया-ततः खलु स वेहल्लः कुमारः अन्यदा कदाचित् कूणिकस्य राज्ञोऽन्तरं जानाति, ज्ञात्वा सेचनकं गन्धहस्तिनमष्टादशवकं च हारं गृहीत्वा अन्तःपुरपरिवारसंपरिवृतः सभाण्डमत्रोपकरणमादाय चम्पातो नगरीतः प्रतिनिष्क्रमति, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव वैशाली नगरी तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य वैशाल्यां नगर्यामार्यकं चेटकमुपसंपद्य विहरति ।। ६४ ।।
पदार्थान्वय.-तएणं-तत्पश्चात्, से वेहल्ले कुमारे-वह वेहल्ल कुमार, अन्नया कयाइकिसी अन्य समय, कणिकस्य राज्ञो-राजा कूणिक के, अन्तरं जाणाइ--आन्तरिक अर्थात् मानसिक आशय को समझ जाता है, जाणिता-और जान कर, सेयणगं गन्धहत्यि-सेचनक गन्ध हस्ती, अट्ठारस बंकं च हारं-(बोर) मठारह लड़ियों वाले हार को, गहाय-लेकर, अन्तेउर-परियालसंपरिबडे-अपनी रानियों और खङ्ग-रत्नादि तथा अपने समस्त कोष तथा दास-दासी आदि सेवक वर्ग को साथ लेकर, (तथा) सभाण्डमत्रोपकरणम् -बर्तन आदि घरेलू सामग्री को, गहाय - साथ लेकर, चम्पाओ नयरोप्रो-चम्पा नामक नगरी से, पडिनिक्खमइ-बाहर निकल जाता है, पडिनिक्खमित्ता-और बाहर निकल कर, जेणेव साली नयरी-जिधर वैशाली नगरो यो, ते मेर- उधर हा, उबागच्छह-चल पड़ता है, उवापच्छिता-और चल कर, वेसालीए नयरीएवशाली नगरी में, अज्जगं चेडयं-(अपने नाना) आर्य चेटक के, उपसंपज्जित्ता-पास पहुंच कर, पं विहरइ-अपना जोवन-यापन करने लगता है ।।६४।।
मूलार्थ-तत्पश्चात् वेहल्ल कुमार जब किसी समय राजा कूणिक के आन्तरिक भाशय को जान जाता है और जानकर सेचनक: गन्ध हस्ती और अठारह लड़ियों वाला