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वर्ग-प्रथम]
(१०८)
[निरयावलिका
है और, पडिनिक्खमित्ता निकल कर, वेसालीए नयरीए- वैशाली नगरी में, अज्जगं चेयरायं आर्य चेटक राजा के. उवसंपत्तिाण-पास पहंच करके: वितरित्तए- विचरण करूं, एवं- इस प्रकार, संपेहेइ संपे हत्ता-विचार करता है और विचार करके, कणियस्स रस्नो-- कणिक राजा के, अंतराणि-अन्तर (कमियों) को, जाव-यावत्, पडिजागरनमाणेपडिजागरमाणे विहर इ-देखता हुआ विचरता है ।। ६३।।
मूलार्थ-तत्पश्चात् उस वेहल्ल कुमार ने राजा कूणिक के द्वारा बारम्बार सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ियों वाले हार के छीनने के भाव को देखकर उसके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि इन वस्तुओं के ग्रहण करने का कामी होने से. छीनने का कामी होने से, मुझे यह उचित है कि मैं सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ियों वाला हार लेकरके, अन्तःपुर से घिरा हुआ, अपने भाण्डोपकरण आदि लेकर, चम्पानगरी से निकलूं और वैशाली नगरी में आर्य चेटक (नाना) के पास चला जाऊ। .
वह इस प्रकार विचार करता है और विचार करके राजा कोणिक के अन्तर अर्थात् छिद्रों को देखता हुआ विचरता है।
टीका-प्रस्तुत सूत्र में वेहल्ल कुमार की सेचनक गंधहस्ती व अठारह लड़ियों वाले हार से प्रति रक्षा की चिन्ता का वर्णन है । वेहल्ल कुमार को राजा कोणिक की शक्ति का अनुभव है, इस लिए वह सोचता है कि चम्पा में रहते हुए मैं इन वस्तुओं की रक्षा नहीं कर सकता। मेरे लिए सपरिवार चम्पा नगरी को त्याग कर वैशाली में अपने नाना आर्य चेटक के पास जाना ठीक रहेगा।
- मनुष्य वहीं जाता है वहां उसके धन-धान्य व परिवार की रक्षा हो सके । इससे वेहल्ल की अपने परिवार के प्रति सहज चिंता प्रतिध्वनित होती है। हर गृहस्थ को अपने परिवार की रक्षा के मामले में इसी तरह रक्षा की चिन्ता करनी चाहिए।
इस सूत्र से यह भी ध्वनित होता है कि जिस देश में अपने धन-धान्य की रक्षा न होती हो, राजा प्रजा की अभिलाषाओं से अनभिज्ञ हो, वह देश त्याग देना ही उपयुक्त है। वेहल्ल कुमार ऐसे अवसर की तलाश करने लगा कि कब अच्छा अवसर आये और कब वह चम्पा को छोड़ कर, अपने नाना चेटक के पास चला जाये।
प्रस्तुत सूत्र से सिद्ध होता है राजा कोणिक स्वयं गन्धहस्ती व अठारह लड़ियों वाला हार नहीं चाहता था, न ही वह अपने भाइयों से युद्ध करना चाहता था, परन्तु प्राचीन काल से त्रिया-हठ की हजारों कथायें भारतीय इतिहास में मिलती हैं। इस त्रिया-ह के कारण ही मर्यादा पुरुषोत्तम ।