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वर्ग-प्रथम]
(१०४)
[निरयावलिका
क्खणं-अभिक्खणं कूणियं रायं एयमझे विन्नवेइ।
तएणं से कूणिए राया पउमावईए देवीए अभिक्खणं-अभिक्खणं एयमढ़ विन्नविज्जमाणे अन्नया कयाइ वेहल्लं कुमारं सद्दावेइ, सद्दावित्ता सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसबंकं च हारं जायइ ॥६१॥
छाया-ततः खलु स कूणिको राजा पद्मावत्याः देव्याः एतमथं नो आद्रियते, नो परिजानाति, तूष्णीकः सतिष्ठते।
ततः खलु सा पद्मावती देवी अभीषणं-अभीक्ष्णं कणिक राजानं एतमर्थ विज्ञापयति । ततः खलु स कूणिको राजा पद्मावत्याः देव्याः अभीक्षणं - अभीक्ष्णं एतमर्थं विज्ञाप्यमानः अन्यदा कदाचित् वेहल्लं कुमारं शब्दयति, शब्दयित्वा सेचनकं गन्धहस्तिनं अष्टादशवक्रौंच हारं याचते ॥६१॥
पदार्थान्वया-तएणं-तब, से कूणिए राया-वह राजा कूणिक, पउमावईए देवीए-महारानी पद्मावती द्वारा, एयमट्ठ-निवेदित की गई बात को, नो भाद्रियते-कोई आदर नहीं देता अर्थात् उसे कोई महत्त्व नहीं देता, नो परिजाणइ-न ही उसे अच्छा मानता है, तुसिणीए संचिटुइअतः चुप्पी धारण करके बैठा रहता है। तएणं-तब, सा पउमावई देवी-वह महारानी पद्मावती अभिक्खणं-अभिक्खणं-बारंबार, कृणियं रायं-राजा कूणिक के समक्ष, एयम? विनवेइ-वही बात दोहराती है।
तएणं-तब, से कूणिए राया-वह राजा कूणिक, पउमावईए देवीए-महारानी पद्मावती के द्वारा, अभिक्खणं-अभिक्खणं-बारम्बार, एयमटुं-उसी बात को, विनविज्जमाणे-कहने पर, अन्नया कयाइ-कुछ समय बाद, वेहल्लं कुमारं सदावेइ-वेहल्ल कुमार को बुलवाता है, सद्दावित्ता और बुलवा कर उससे, सेयणगं गन्धहत्थि-सेचनक गन्धहस्ती, अट्ठारसबकं च हारंऔर अठारह लड़ियों वाला हार, जायइ-मांगता है ।।६१॥
__मूलार्थ-तब वह राजा कूणिक महारानी पद्मावती देवी की बातों को कोई महत्त्व नहीं देता और न ही वह उसकी बातों को अच्छा समझता है. बल्कि (उपेक्षा भाव से) चुप बैठा रहता है । तब वह महारानी पद्मावती बार-बार राजा कूणिक के समक्ष अपनी बात को दोहराती है। इस प्रकार महारानी पद्मावती के द्वारा बार-बार अपनी बातों को दोहराने पर राजा कूणिक कुछ समय के बाद बेहल्ल कुमार को बुलवाता है और बुलवा कर उससे सेचनक गन्धहस्ती और अठारह लड़ियों वाला हार मांगता है ॥६१।।