________________
निरयावलिका]
(१०३)
[वर्ग-प्रथम
कुमार ही, सेयणएणं गंधहत्थिणा-सेचनक हाथी को पाकर, अणेगेहि कोलावणएहि-अनेक प्रकार के खेल, कोलावेइ-खेलता है, तं किण्णं सामी अम्हं-तो हे स्वामी ! इससे हमें क्या लाभ है, रज्जेण वा जणवएण वा-इस राज्य-वैभव और इस विशाल राज्य से, जइणं अम्ह-जब कि हमारे पास, सेयणए गन्धहत्थी-यह सेचनक हाथी ही, नत्थि-नहीं है ? ॥६०।।
मूलार्थ-तत्पश्चात् उस महारानी पद्मावती को जब यह समाचार प्राप्त हुआ तो उसके मन में इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ कि इस प्रकार तो वेहल्ल कुमार ही, सेचनक हाथी के द्वारा अनेक प्रकार के खेल खेल रहा है, तब तो वह वेहल्ल कुमार ही वस्तुत: राज्य-प्राप्ति का फल अनुभव करता हुआ, जीवन का आनन्द लूट रहा है. राजा कणिक नहीं। ऐसी दशा में हमारा इस राज्य-वैभव और इतने बड़े प्रदेश की प्राप्ति का क्या प्रयोजन रह जाता है ? यदि हमारे पास सेचनक गन्धहस्ती ही नहीं है । अब मेरा इसी में श्रेय है कि.मैं यह बात राजा कूणिक से निवेदन कर दू। ऐसा करके अर्थात् यह बात मन में आते ही वह यह निश्चय करती है और निश्चय करते ही वह जहां राजा कूणिक था वहां आती है और वहां पहुंच कर दोनों हाथ जोड़ते हुए इस प्रकार कहती है-"हे स्वामिन् ! जब कि वेहल्ल कुमार ही सेचनक हाथी को पाकर अनेक प्रकार के खेल खेलता है तो हे स्वामी ! इस राज्य-वैभव और इतने विशाल राज्य से हमें क्या लाभ है ? जब कि हमारे पास सेचनक हाथी ही नहीं है ॥६०॥
टोका-इस वर्णन द्वारा सूत्रकार ने व्यर्थ की लोक-चर्चाओं की ओर ध्यान देने के दुष्परिणामों का वर्णन कर दिया है और यह भी बतलाया है कि उस समय पारिवारिक शान्ति भंग हो जाती है जब स्त्रियां देवर जेठ आदि से ईर्ष्या करने लगती हैं। दोनों भाइयों और परस्पर सम्बन्धी राज्यों में भविष्य में जो कलह उत्पन्न हुई वह रानी पद्मावती के हृदय की ईर्ष्या का ही दुष्परिणाम है।
इसमें मनुष्य को यथाप्राप्त धन से सन्तुष्ट न रहने का दुष्परिणाम भी बतलाया गया है।
स्त्री - हृदय विशेष ईर्ष्यालु होता है, इस मानवीय कमजोरी का भी शास्त्रकार ने सुन्दर चित्रण उपस्थित किया है ।।६०॥
मूल-तएणं से कूणिए राया पउमावईए देवीए एयमठें नो आढाइ, नो परिजाणइ, तसिणीए संचिट्ठइ । तएणं सा पउमावई देवी अभि