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बर्ग
- प्रथम ]
[ निरयावलिका
( १०० )
रानियों को सूंड से पकड़ता
मूलार्थ - तत्पश्चात् वह सेचनक हाथी वेहल्ल कुमार को है और पकड़ कर किसी को अपनी पीठ पर बिठला लेता है, किसी को कन्धे पर किसी को कुम्भ स्थल पर, किसी को सिर पर, किसी को दांतों पर बिठला देता है । किसी को सूंड से पकड़ कर ऊपर आकाश में उछालता है, किसी को सूंड से पकड़ कर झुलाता है, किसी को दांतों के मध्यभाग में बिठला लेता है, किसी को जल की फुहारों से स्नान करा देता है और किसी को अनेक प्रकार की क्रीड़ाओं द्वारा खेल खिलाता है ॥ ५८ ॥
टीका -- गीतार्थ शास्त्र मर्मज्ञ मुनियों का यह कथन है कि इस गन्धहस्ती को जाति-स्मरण ज्ञान था । इसका मतिज्ञान भी अत्यन्त निर्मल था; इसी कारण वह उपर्युक्त जल-क्रीड़ायें कर रहा
था।
" गन्धहस्ती " ऐसा हाथी होता है जिसके शरीर की विशेष गन्ध को पाते ही अन्य हाथी त्रस्त हो जाते हैं और हथनियां उसकी गन्ध से आकृष्ट होकर स्वयं ही उसके पास आ जाती हैं । इससे यह भी प्रमाणित होता है कि पञ्चेन्द्रिय जीवों को प्रशिक्षित करके विशिष्ट ज्ञान भी दिया जा सकता है ।। ५८ ।।
उत्थानिका - अब सूत्रकार इस घटना के परिणाम पर प्रकाश डालते हैं-,
मूल -- तएणं चंपाए नयरीए सिंघाडग-तिग- चउक्क- चच्चर-महापहपहेस बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव० परूवेइ एवं खलु देवाणु - पिया ! वेहल्ले कुमारे एयणएणं गन्धहत्थिणा अंतेउर० तं चेव जाव अहि की लावणएहि कीलावेइ, तं एस णं वेहल्ले कुमारे रज्ज - सिरिफलं पच्चणुभवमाणे विहरइ, नो कूणिए राया ॥ ५६ ॥
छाया - ततः खलु चम्पायां नगर्यां शृङ्गाटक-त्रिक-चतुष्क- चत्वर-महापथ-पथेषु बहुजनोऽन्योfrer एवमाख्यापयति यावत् प्ररूपयति एवं खलु देवानुप्रियाः ! बेहल्लः कुमारः सेचकेन गन्धहस्तिना अन्तःपुर० तदेव यावत् अनैकैः क्रीडनकैः क्रीडयति तदेव खलु वेहल्ला कुमारो राज्यश्रीफलं प्रत्यनुभवन् विहरति नो कूणिको राजा ॥ ५६ ॥
पदार्थान्वयः - तणं - तत्पश्चात्, चंपाएं नयरीए-उस चम्पा नगरी में, सिंघाडग-तिगचक्क चच्चर - महापहपहेसु - सिंघाडे जैसे त्रिकोण मार्गों, चौराहों, राजमार्गों पर, बहुजनो - अनेक