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________________ निरयावलिका) [वर्ग-प्रथम साथ ही लाना था और वह लाया । उसी हाथी पर बैठ कर वह अपने परिवार के साथ गंगा नदी पर स्नान करने के लिये गया था ।।५७।। उत्थानिका-अब सूत्रकार वेहल्ल कुमार और उसके परिवार की जलक्रीड़ाओं का वर्णन करते हैमूल--तएणं सेयणए गन्धहत्थी देवीओ सोंडाए गिण्हइ, गिण्हित्ता अप्पेगइयाओ पुढे ठवेइ, अप्पेगइयाओ खंधे ठवेइ, एवं अप्पेगइयाओ कुंभे ठवेइ, अप्पेगइयाओ सीसे ठवेइ, अप्पेगइयाओ दंतमुसले ठवेइ, अप्पेगइयाओ सोंडाए गहाय उड्ढं वेहासं उविहइ, अप्पेगइयाओ सोंडागयाओ अंदोलावेइ, अप्पेगइयाओ दंतंतरेसु नीणेइ, अप्पेगइयाओ सीभरेणं हाणेइ, अप्पेगइयाओ अणेहि कोलावणेहिं कोलावेइ ॥८॥ छाया-ततः खलः सोचनको गन्धहस्ती देवीः शण्डया गृह्णाति, गृही वा अप्पेकिकाः पृष्ठे स्थापयति, अप्येकिका: स्कन्धे स्थापयति, अप्पेकिका: कुम्भे स्थापयति, अत्येकिकाः शीर्षे स्थापयति अपेकिकाः दन्तमुशले स्थापयति, अप्येकिकाः शुण्डया गृहीत्वा ऊर्ध्व वैहायसमुद्वहते, अप्येकिकाः शुण्डागता आन्दोलयति, अप्ये किकाः दन्तान्तरेषु नयति, अप्येकिकाः शोकरेण स्नपति, अप्येकिकाः अनेकैः कोडनकः क्रीडयति ।।५८॥ पदार्थान्वयः-तएणं-तब वह, सेयणए गंधहत्थी-सेचनक गन्धहस्ती, देवीओ-वेहल्ल कुमार की रानियों को, सोंडाए गिण्हइ-सूंड से पकड़ता है (और), गिण्हित्ता - पकड़ कर, अप्पेगइयाओ-उनमें से किसी को. पुढे ठवेइ-अपनी पीठ पर बिठला लेता है, अप्वेगइयाओ-किसी को, खंधे ठवेइ-कन्धे पर बिठला लेता है. एवं -इस प्रकार, अप्पेगइयाओ-किसी को अपने कुम्भस्थल पर (अर्थात् गर्दन के पास), ठवेइ-स्थापित कर लेता है, अप्पेगइयाओ-किसी को, सीसे ठिवेइ-सिर पर बिठला लेता है, अप्पेगइयाओ- और किसी को, दंतमुसले ठवेइ-दांतों पर बिठला लेता है, अप्पेगइयाओ-कुछ को, सोंडाए गहाय - सूंड से पकड़ कर, उड्ढं वेहासं उविहइ-ऊचे आकाश मैं उछाल कर पुनः दांतों पर रख लेता है, अप्पेगइया मो-किसी को, सोंडगयाओ-सूड से उठा कर, अंदोलावेइ-झुलाता है, अप्पेगयाओ-कुछ को, दंतंतरेसु नीणेइदांतों के अन्तर में (दोनों दांतों के बीच में) ले जाता है, अप्पेगइयाओ-और कुछ को, सीभरेणंजल-सीकरों अर्थात् जल की फुहारों से, हाणेइ-स्नान करवाता है, अप्पेगइयाओ-अनेक स्त्रियों को, अणेगेहि-अनेक प्रकार की, कोलावहि-क्रीड़ाओं से, कोलावेइ-खेल खिलाता है ।।५८॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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