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वर्ग-प्रथम]
(१८)
[निरयावलिका
टीका--"आत्मज" शब्द का भाव यह है कि कोणिक और वेहल्ल कुमार की माता एक ही थी। इसी भाव को स्पष्ट करने के लिये वेहल्ल कुमार को “सहोयरे" सहोदर एक ही माता के उदर से उत्पन्न कहा है।
दोनों का पिता तो राजा श्रेणिक था ही। यह स्पष्टीकरण इसलिये दिया गया है कि राजा श्रेणिक की अनेक रानियां थीं, उन सबके पुत्र भी राजा श्रेणिक के ही पुत्र थे, किन्तु वे सब राजा कणिक के सगे भाई न थे ॥५६॥
मूल-तएणं से वेहल्ले कुमारे सेणएणं गन्धहत्थिणा अंतेउर परियालसंपरिवुडे चंपं नार मझमझेणं निग्गच्छइ, निगच्छित्ता अभिक्खणंअभिक्खणं गगं महानई मज्जणयं ओयरइ ॥५७॥
छाया-ततः खलु सः वेहल्लः कुमारः सेचनकेन गन्धहस्तिना अन्तःपुर-परिवार-संपरिवृतः, चम्पायाः नगर्याः मध्यं ध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य अभीक्ष्णं-अभीक्ष्णं गगां (गंगायां) महानदी (महानद्यां) मज्जनकमवतरति ॥५७।।
पदार्थान्वयः-तए णं - तब, से वेहल्ले कुमारे-वह वेहल्ल कुमार, सेणएनं गंधहत्थिणासेचनक गन्धहाथी पर (सवार होकर), असे उर-परियाल-संपरिवुडे-अपनी रानियों और शेष परिवार एवं परिकर आदि के सहित, चंपं नरि-चम्पा नगरी के, मज्झं-मज्झेणं-बीचों-बीच के मार्ग से, निग्गच्छद-(नगरी से) बाहर जाता है, निग्गच्छित्ता-और बाहर जाकर, अभिक्खणंअभिक्खणं-बारम्बार, गंगं महानई-महानदी गंगा में, मज्झणयं-स्नानार्थ, ओयरइ-अवतरित होता है-उसमें प्रवेश करता है ।।५७।।
मूलार्थ-तत्पश्चात् वह वेहल्ल कुमार सेचनक गन्धहस्ती पर सवार होकर अपनी रानियों और निजी परिवार एवं दास-दासियों के साथ चम्पा नगरी के बचोंबीच के मार्ग से होते हुए नगरी से बाहर निकला और निकल कर महानदी गंगा में बार-बार स्नान करने के लिए उतरा- अर्थात् गंगा नदी में प्रविष्ट हुआ ॥५७॥
टीका-इस सूत्र द्वारा स्पष्ट हो रहा है कि कूणिक जब राजगृह नगरी से चम्पा नगरी में पाया तो वेहल्ल कुमार आदि अपने दस भाइयों को भी साथ ही ले गया था।
वेहल्ल कुमार ने अपने पिता के दिए हुए गन्धहस्ती और अठारह लड़ियों वाले हार को भी