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निरयावलका ]
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कोणिक को पितृ शोक का इतना गहरा श्राघात लगा कि आखिर उसने राजगृह नगर परित्याग कर दिया और चप्पा को उसने अपनी राजधानी बना लिया ।
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[ वर्ग -
- प्रथम
“ईश्वर” “तलवर” प्रादि शब्द उस समय अधिकारी वर्ग के लिये प्रयुक्त होते थे ।
इस नगरी का नाम "चम्पा" इसलिए पड़ा था कि जहां पर यह नगरी बसाई गई थी उस स्थान पर पहले हजारों चम्पक वृक्ष थे, अतः वह नगरी 'चम्पा' नाम से प्रसिद्ध हुई ।। ५५ ।।
मूल - तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए कूणियस्स रन्नो सहोयरे कणीयसे भाया वेहल्ले नामं कुमारे होत्या सोमाले जावं सुरूवे । तएणं तस्स वेहल्लस्स कुमारस्स सेणिएवं रन्ना जीवंतणं चैव सेयणए गंधहत्थी अठ्ठारसबंके य हारे पुम्बदिन्ने ॥ ५६ ॥
छाया-तत्र खलु चम्पायां नगर्यां श्रेणिकस्य राज्ञः पुत्रश्चेलनाया देव्या आत्मजः कूणिकस्य राज्ञः सहोदरः कनीयान् भ्राता वेहल्लो नाम कुमार आसीत्, स्कुमारो यावत् सुरूपः । ततः खलु तस्य वेलहल्लस्य कुमारस्य श्र ेणिकेन राज्ञा जीवता चैव सेचनको गन्धहस्ती अष्टादशवको हारश्च पूर्व दत्तः ॥५६॥
. पदार्थान्वयः -- तत्थ णं चंपाए नयरीए वहां उस चम्पा नामक नगरी में, सेणियस्स रन्नो पुसे - राजा श्रेणिक का पुत्र, चेल्लणाए देवीए अत्तए - चेलना देवी का आत्मज कूणियस्स रन्नो सहोयरे - राजा कूणिक का सहोदर (सगा), कणीयसे भाया - छोटा भाई वेहल्ले नामं कुमारेवेहल्ल नाम का, कुमारे होत्था - राजकुमार था; सोमाले जाव सुरूवे - सुकुमार यावत् सुरूपा, तणं तस्स वेल्लरस कुमारस्स - पहले कभी उस वेहल्ल कुमार को, सेणिएणं रन्ना - राजा श्रेणिक ने, जीवंत एणं - अपने जीवन काल में हो, सेप्रगए गन्ध हत्थी - सेचनक गन्धहस्ती, अट्ठारसबंके 'हारे - अठारह लड़ियों वाला हार, पुब्वदिन्ने - पहले ही दे दिया था ||५६ ॥
मूलार्थ - उस चम्पा नामक नगरी में राजा श्रेणिक का ही पुत्र और महारानी चेलना का आत्मज तथा राजा कूणिक का सगा झोटा भाई वेहल्ल नाम का राज कुमार था जो कि सुकुमार एवं सुन्दर रूप वाला था । उस वेहल्ल कुमार को राजा श्रेणिक ने अपने जीवन-काल में ही सेचनक नाम का गन्धहस्ती और अठारह लड़ियों वाला हार पहले ही दे दिया था । ५६६