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________________ वर्ग-प्रथम] (६६) [ निरयावलिका तएणं कोणिए राया-तत्पश्चात् वह राजा कोणिक, अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय में कालादीए दस कुमारे-काल आदि अपने दस राज कुमार भाइयों को, सद्दावेइ-बुलवाता है, सद्दावित्ता-और बुलवाकर, रज्जं च-समस्त राज्य-वैभव तथा, जनवयं च-जनपदों को, एक्कारस भाए-ग्यारह भागों में, विरिंचइ-बांट देता है, विरिचित्ता-और बांट कर, सयमेवखुद ही, रज्जसिरिं करेमाणे-राज्य-लक्ष्मी का उपभोग करते हुए, पालेमाणे-उसका पालन करते हुए, विहरइ-विहरण करने लगा ।।५५॥ मूलार्थ-तदनन्तर वह राजा कूणिक कुछ क्षणों के बाद कुछ स्वस्थ होकर रुदन. क्रन्दन, शोक और विलाप करता हुआ इस प्रकार बोला-"ओह मैं अभागा हूं: पापी हूं, अकृत-पुण्य हूं, मैंने बहुत ही दुष्ट कार्य किया है जो कि मैंने राजा श्रेणिक को जो कि मेरे अत्यन्त प्रिय देवतुल्य और गुरु के समान एवं स्नेहानुराग-रंजित थे उन्हें हथकड़ियों एवं बेड़ियों से जकड़ दिया। तो निश्चय पूर्वक मैं ही उसका मूल कारण हूं जो राजा श्रेणिक मृत्यु को प्राप्त हुए। इस प्रकार हार्दिक दुःख व्यक्त करके ईश्वर तलवर और सन्धिपाल आदि से घिरे हुए-रोते शोक करते विलाप करते हुए महान् ऋद्धि-समृद्धि के साथ उसने राजा श्रेणिक को देखा और अनेक विध लौकिक कृत्यों के साथ उनका अन्तिम-संस्कार किया। तदनन्तर वह कोणिक कुमार अत्यन्त मानसिक पीड़ा से पीड़ित होने पर, एक बार अपनी महारानियों एवं परिवार के साथ अपने खान-पान एवं वस्त्रों आदि के सहित राजगृह नगर से बाहर निकला और जहां पर चम्पा नगरी थी वहां पर आया, वहां पर भी अनेकविध भोग-समुदाय को प्राप्त करता हुआ कुछ समय पाकर शोक-रहित हो गया अर्थात् अपने पितृ-शोक को भूल गया । तत्पश्चात् एक बार उस राजा कोणिक ने अपने कालादिक दस राजकुमार भाइयों को बुलवाया और बुलबाकर प्राप्त राज्य-वैभव और समस्त जनपदों को उसने ११ भागों में बांट दिया और बांट कर स्वयं राज्य-श्री का उपभोग एवं पालन करने लगा ।।५४॥ ____टोका-"बहहिं लोइयाइं मयकिच्चाई" इन शब्दों से स्पष्ट ध्वनित हो रहा है कि कोणिक ने पिता की अन्त्येष्टि करते समय जो भी कृत्य किये वे लौकिक थे, उनका मध्यात्म-जगत से कोई सम्बन्ध नहीं था।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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