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निरयावलिका)
(६५)
[वर्ग-प्रथम
इति कृत्वा ईश्वर-तलवर यावत् सन्धिपालैः सार्धं संपरिवृतो रुदन् ३-(क्रन्दन, शोचन् विलपन्) महता ऋद्धिसत्कार-समुदयेन श्रेणिकस्य राज्ञो नीहरणं करोति, कृत्वा बहूनि लौकिकानि मृतकृत्यानि करोति।
___ ततः खलु सः कूणिकः कुमार एतेन महता मनोमानसिकेन दुःखेनाभिभूतः सन् अन्यदा कदाचित अन्तःपुर-परिवार - संपरिवृतः सभाण्डमत्तोप-करुणमादाय राजगृहात् प्रतिनिष्कमति, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव चम्पा-नगरी तत्रैवोपागच्छति, तत्रापिच विपुल-भोग-समिति समन्वागतः कालेन अल्पशोको जातश्चाप्य भूत्।
ततः खलु स: कूणिको राजा अन्यदा कदाचित् कालिकादिकान् दसकुमरान् शब्दापयित्वा राज्यं च यावत् जनपदं च एकादश-भागान् विभजति, विभज्य स्वयमेव राज्यश्रियं कुर्वन् पालयन् विहरति ।
॥५५॥ पदार्थान्वयः-तएणं-तत्पश्चात्, से कूणिए कुमारे-वह कूणिक कुमार, महत्तंतरेणकुछ ही क्षणों के अनन्तर, आसत्थे समाणे-स्वस्थ ही जाने पर, रोयमाणे-रोते हुए, कंदमाणेक्रन्दन करते हुए, सोयमाणे-शोकाकुल होते हुए, विलवमाणे-विलाप करते हुए, एवं वयासीइस प्रकार कहने लगा, अहो णं मए-मोह मैं, अधन्नेणं-अभागा हूं, अपुन्नेणं-अधर्मी हैं, अकय-पुन्नेणं-पुण्य-हीन हूँ, दुठ्ठ कयं-मैंने दुष्कृत्य किया है जो कि, सेणियं रायं-राजा श्रेणिक को, (जो मेरे) पियं-प्रिय थे, देव तुल्य थे, अत्यन्त स्नेहानुराग-रंजित थे, निगडबन्धनं कुर्वता-उन्हें हथकड़ियों बेड़ियों से बन्धन में डालते हुए, मम मूलगं चेव-तो निश्चय ही मैं ही इसका मूल कारण हूं, (जो कि) सेणिये राया कालगते-राजा श्रेणिक कालधर्म (मृत्यु) को प्राप्त हुए हैं। त्तिकट्ट-ऐसा कह कर, ईसर-तलवर-जाव संधिवाल सद्धि- ईश्वर तलवर और संघिपाल आदि, संपरिवडे-से घिरे हुए, रोयमाणे-रुदन क्रन्दन विलाप आदि करते हुए, महया-महान. इडिढसक्कारसमुदएणं-समृद्धि सत्कार एवं समारोह के साथ, सेणियस्स रन्नो नीहरणं करेई.-राजा श्रेणिक के शव को देखता है; करित्ता-और देख कर, बहूइं-बहुत प्रकार के, लोइयाई-लौकिक. मयकिच्चाई करेइ-मृतककृत्यों को करता है।
तएणं से कूणिए कुमारे-तदनन्तर वह कूणिक कुमार, एएणं महया-इस महान् मनोमाणसिएणं-अपने मानसिक, दुक्खेणं-दुःख से, अभिभूए समाणे-अभिभूत हो जाने पर, अन्नया कयाइ-फिर कभी, अंतेउर परिवाल-संपरिवडे-अन्तपुर-महारानियों और परिवार से युक्त अर्थात् घिरा हुआ; सभंडमत्तोवगरण मायाए- अपने वस्त्र-पात्र आदि जीवन-साधनों के साथ, राजगिहाओ-राजगृह नगरी से, पडिनिस्खमइ-बाहर निकलता है, पडिनिक्खमित्ता-और बाहर निकल कर, जेणेव चंपा नयरी-जहां पर चम्पा नाम की नगरी थी, तेणेव-वहीं पर, उवागच्छइ-आता है। तत्थ वि णं-और वहां पर आकर; विउलभोगसमिइ-समन्नागए-विपुल-भोग सामग्री उसने प्राप्त की, (और) कालेणं-और समय पाकर, अप्पसोए जाए यावि होत्थाअल्प शोक वाला अर्थात् शोक-रहित हो गया।