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बर्ग-प्रथम]
(६४)
[निरयावलिका
राजा लोग पहले अपने पास 'तालपुट' नामक भयंकर विष (साईनाइड जैसा विष) प्रायः रखा करते थे। आपत्ति आने पर घुट-घुट कर मरने की अपेक्षा वे यह विष खाकर मर जाते थे। वह राजा था, इसलिए बन्दीखाने में बन्द करते समय शायद उसकी पूरी तरह तलाशी न ली गई हो, अतः यह विष राजा श्रेणिक के पास ही रह गया होगा। इसलिए जेल में उसे विष कहां से प्राप्त हुआ ? यह शंका नहीं करनी चाहिये ॥५४॥
__मूल-तएणं से कूणिए कुमारे महत्तंतरेणं आसत्थे समाणे रोयमाणे कंदमाणे, सोयमाणे विलवमाणे एवं वयासी-अहो णं मए अधन्नेण अपुन्नेणं अकय-पुन्नेणं दुठ्ठ कयं सेणियं रायं पियं देवयं अच्चंतनेहाणुरागरत्तं निलयबंधणं करतेणं, मम मूलगं चेव णं सेणिए राया कालगए तिकटु ईसर-तलवर जाव० संधिवाल-सद्धिं संपरिवुड़े रोयमाणे इड्ढिसक्कारसमुदए णं सेणियस्स रन्नो नीहरणं करेइ। करित्ता बहूई लोइयाइं मयकिच्चाई करे।
तएणं से कूणिये कुमारे एएणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेण अभिभूइ समाणे अन्नया कयाइ अंतेउर-परिढाल संपरिवुडे सभंड मत्तीवगरणमायाए रायगिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ। तत्थवि णं विउलभोगसमिइ-समन्नागए कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था।
तएणं से सेणिए राया अन्नया कयाइ कालादीए दस कुमारे सद्दावेइसद्दावित्ता रज्जं च जाव जणवयं च एक्कारसभाए विरिंचइ, विरिचित्ता सममेव रज्जसिरिं करेमाणे पालेमाणे विहरइ ॥५५॥
छाया-ततः खलु स; कूणिकः कुमारो मुहूर्तान्तरेण आस्वस्थः सन् रुदन् क्रन्दन शोचन् विलपन एवमवाहीत अहो खलु मया अधत्येत अपुण्येन. अकृतपुण्येन दुष्ठ कृतं श्रोणिक राजानं प्रियं . वैवतमत्यन्तस्नेहानुराज-खतं निपड़-बन्धनं कुर्वता, मम मूलकं चैव खलु श्रेणिको राजा कालगतः,