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निरयावलिका ]
( ३ )
| वर्ग - प्रथम
- विष के शरीर में घुलते ही, निप्पाणे निच्चेट्ठे- निष्प्राण एवं निश्चेष्ट होकर, जीवविप्पजढे - जीवन विहीन होकर ( भूमि पर ), ओइण्णे - गिर पड़ा। तएण से कूणिए कुमारे- तब वह कूणिक कुमार, जेगेव चारगसाला - जहां पर बन्दीखाना था, तेणेव उवागयं-वहीं पर आ पहुंचा, ( वह आते ही ) सेणियं यं - राजा श्रेणिक को, निप्पाणं निच्चिट्ट - निष्प्राण एवं निश्चेष्ट, जीव-विप्पजढं-जीवनविहीन को, ओइन्नं भूमि पर गिरे हुए को, पासइ - देखता है, पासित्ता - देख कर, महयाअत्यन्त पिइसोएगं - पितृ-शोक से, अध्कुरणे समाणे - शोकाक्रान्त हो जाने पर, परसु-नियत्ते विवपरशु से काटे हुए, चंपगवरपायवे – चम्पक वृक्ष के समान, "धसत्ति" - धड़ाम से, धरणियलंसिपृथ्वी पर सब्बंगेहि — पूरे शरीर सहित, संनिवडिए - गिर पड़ा || ५४ ||
मूलार्थ - तत्पश्चात् राजा श्रेणिक हाथ में परशु लिए हुए कोणिक कुमार को अपनी ओर आते हुए देखता है और देखते ही उसने मन ही मन कहा - यह कूणिक कुमार निश्चय ही अकर्तव्य को कर्तव्य मानने वाला, राज-नियमों एवं लज्जा से रहित है । यह हाथ में परशु लिए हुए शीघ्र ही यहां पहुंचने वाला है, इस समय मैं नहीं जान पा रहा कि यह मुझे किस बुरी मौत से मारेगा, ऐसा सोचते ही भयभीत होकर उसने तालपुड विष को अपने मुंह में डाल लिया ।
तदनन्तर वह राजा श्रेणिक तालपुट विष को मुख में डालते ही कुछ ही क्षणों विष के शरीर में घुल जाने से निष्प्राण एवं निष्चेष्ट तथा जीवन-रहित होकर भूमि पर गिर पड़ा। तब वह कूणिक कुमार जहां पर बन्दी खाना था वहीं पर आ पहुंचा । उसने वहां आकर राजा श्रेणिक को निष्प्राण निश्चेष्ट और जीवन विहीन- मृतक अवस्था में भूमि पर पड़े हुए देखा और देखते ही वह अत्यन्त (भारी) पितृ-वियोग के कारण शोकाक्रान्त होकर, परशु से कटे हुए चम्पक वृक्ष के समान धड़ाम से धरती पर पूरे शरीर से गिर पड़ा || ५४॥
टोका - प्रस्तुत सूत्र में राजा श्रेणिक की बन्दीगृह में हुई मृत्यु का वर्णन किया गया है । राजा श्रेणिक ने कूणिक कुमार के अब तक के व्यवहार से यही जाना था कि यह मुझे मारने ही आ रहा है।
यह घटना इस विषय का संकेत दे रही है कि मनुष्य को सहसा कोई निर्णय नहीं ले लेना चाहिये, बिना विचारे किया हुआ कार्य मृत्यु जैसे अनर्थ का कारण बन जाता है ।