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वर्ग-प्रथम]
(६२)
[निरयावलिका
तएणं से सेणिए राया तालपुडगविसे आसगंसि पक्खित्ते समाणे मुहुतंतरेणं परिणममाणंसि निप्पाणे निच्चिद्वै जीवविप्पजढे ओइन्ने ।
तएणं से कूणिए कुमारे जेणेव चारगसाला तेणेव उवागयं, सेणियं रायं निपाणं निच्चिद्रं जीवविप्पजढं ओइन्नं पासइ, पासित्ता महया पिइसोएणं अप्फुण्णे समाणे परसुनियत्ते विव चंपगवरपायने धसत्ति धरणियलंसि सव्वंगेहिं संनिवडिए ॥५४॥
छाया-तत खल श्रेणिको राजा कूणिक कुमार परशुहस्तगतमेजमानं पश्यति, दृष्ट्वा एवमवादीत्-एष खलु कूणिकः कुमारः अप्रार्थितप्रथितो यावत् श्रीह्रीपरिवजितः परशुहस्तगत इह हव्यमागच्छति, तन्न ज्ञायते खलु मां केनापि कुमारेण (कुत्सित-मारेण) मारयिष्यतीति, कृत्वा भीतो यावत् संजातभयस्तालपुटकं विषमास्ये प्रक्षिपति ।
ततः खल स श्रेणिको राजा तालपुटकविषे आस्ये प्रक्षिप्ते सति मुहूर्तान्तरेण परिणम्यमाने निष्प्र णो निश्चेष्टो जोवविप्रत्यक्तोऽवतीर्णः । ततः खलु सः कृणिकः कुमारो यत्रैव चारकशाला तत्रैवोपागता, उपागत्य श्रेणिकं राजानं निष्प्राणं निश्चेष्टं जीव-विप्रत्यक्तमवतीर्ण पश्यति, दृष्ट्वा महता पितृ-शोकेन आक्रान्तः सन् परशुनिकृत्त इव चम्पकवर-पादप: "धस" इति धरणीतले सर्वाङ्ग निपतितः ॥५४॥
__ पदार्थान्वय!-तएणं-तत्पश्चात्, सेणिए राया-राजा श्रेणिक, कूणियं कुमारं-कूणिक कुमार को परसुहत्थ गयं-हाथ में कुल्हाड़ा लिये हुए, एज्जमाणं-आते हुए को, पासइ- देखता है, पासित्ता-और उसे देखते ही (वह मन ही मन), एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगा, एस णं कृणिए कुमारे-निश्चय ही यह कूणिक कुमार, अपत्थियपत्थिए-अप्रार्थित की प्रार्थना करनेवाला.. अर्थात् अकर्तव्य को कर्तव्य मानने वाला, जाव० सिरि-हिरि-परिवज्जिए-यावत् राजकर्तव्यरूप लक्ष्मी और लज्जा से रहित, परसु हत्थगए-हाथ में परशु लिये हुए, इह-यहां पर, हव्वमागच्छइ-शीघ्र ही पहुंचने वाला है, तं न नज्जइण-इस समय मैं नहीं जान पा रहा, मम-यह मुझे, केणइ -किस प्रकार की, कु-मारेणं-बुरी मौत से, मारिस्सइ-मारेगा, तिकटु-ऐसा सोचते ही वह, भीए-भय-भीत हो गया, जाव सं नाय भए-और भय उत्पन्न होते ही, तालपुडग विसं-तालपुट नामक भयंकर विष (वह अपने), आसगंसि-मुख में, पक्खिवइ-डाल लेता है।
तएणं तदनन्तर, से सेणिए राया-वह राजा श्रेणिक, तालपुडगविसे-तालपुट विष, भासगंसि पक्खित्ते समाणे-मुख में डालते ही, मुहृत्तंतरेणं-कुछ ही क्षणों में, परिणममार्ग:स