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वर्ग-प्रथम]
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[निरयावलिका
और कुरड़ी पर फेंकने से लेकर राजा श्रेणिक द्वारा उसे वापिस लाकर पुन: चेलना को सौंपने से लेकर यह भी बतलाया कि जब भी तुम मुर्गे द्वारा छीली गई अंगुली के भारी कऽट के कारण व्यथित होते थे तब तुम्हारे पिता श्रेणिक तुम्हारी अंगुली से पीप और खून तब तक चूस कर थूकते रहते थे जब तक तुम चुप होकर शान्त नहीं हो जाते थे । इस प्रकार हे पुत्र ! तुम स्वयं ही समझ सकते हो कि राजा श्रेणिक तुम पर कितना स्नेहानुराग रखते थे ।।५२॥
टोका-प्रस्तुत सूत्र में बतलाया गया है कि महारानी चेलना ने कुमार कोणिक को उसके गर्भ में आने से लेकर आज तक का सारा वृत्तान्त आद्योपान्त सुना दिया, जिससे उसका हृदय एक दम बदल गया, क्योंकि सत्य में हृदय-परिवर्तन की अपार शक्ति है।
इस सूत्र द्वारा यह भी ज्ञात होता है कि कोणिक कुमार इससे पूर्व इस घटना से सर्वथा अपरिचित था, अतः वह अपने पिता को अपना शत्रु समझता था, इसीलिये उसने उसे हथकड़ियों और बेड़ियों से बांध कर जेल में डाल दिया था।
राज्य-लोभ और पूर्व जन्मार्जित कर्म भी इसमें कारण थे, किन्तु जीवन-क्रम के ज्ञान का अभाव भी उसके इस दुष्कार्य करने के पीछे एक कारण था ॥५२॥ ,
तएणं से कूणिए राया चेल्लणाए देवीए अंतिए एयमढं सोच्चा निसम्म चेल्लणं देवि एवं वयासो-दुछु णं अम्मो ! मए कयं, सेणियं रायं पियं देवयं गुरुजणगं अच्चंतनेहाणुरागरत्तं निलयबंधणं करतेणं, तं गच्छामि णं सेणियस्स रन्नो सयमेव नियलाणि छिदामि त्तिकट्ठ परसुहत्थगए जेणेव चारगसाला तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥५३॥
छाया-ततः खलु सः कुणिको राजा चेल्लनाया देव्या अन्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य चेल्लनां देवीमेवमवादीत्-दुष्ठु खलु अम्ब ! मया कृतं घोणिकं राजानं प्रियं दैवतं गुरुजनकमत्यन्तस्नेहानुरागरक्तं निगडबन्धनं कुर्वता, तद् गच्छामि खलु श्रेणिकस्य राज्ञः स्वयमेव निगडानि छिनछि, इति कृत्वा परशहस्तगतो यत्रैव चारकशाला तत्रैव प्रधारयति गमनाय ॥५३॥
पदार्थान्वय'-तएण-तदनन्तर, सकूणिए राया-वह राजा कूणिक, चेल्लणाए देवीएमहारानी चेलना के, अंतिए-पास से, एयम8 सोच्चा-इस वृत्तान्त (घटना-क्रम) को सुन कर,