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________________ निरयावलिका] (८६) _ [वर्ग-प्रथम पुन्नाणं ममं अयमेयारूवे दोहले पाउन्भूए- धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव अंगपडिचारियाओ निरवसेसं भाणियव्वं जाव० जाहे वि य णं तुम वेयणाए अभिभूए महया जाव० तुसिणीए संचिट्ठसि, एवं खलु तव पुत्ता ! सेणिए राया अच्चंतनेहाणुरागरते ॥५२॥ छाया-ततः खलु सा चेल्लना देवी कूणिक कुमारमेवमवादीत्-एवं खलु पुत्र ! त्वयि मम गर्भे आभूते सति त्रिषु मासेषु वहुप्रतिपूर्णेषु ममायमेतद् पो दोहदः प्रादुर्भूतः-धन्याः खलु ता अम्बाः यावत् अङ्गप्रतिचारिकाः, निरवशेष भणितव्यं यावत् यदापि च खलु एवं वेदनयाऽभिभूतो महता यावत् तूष्णोकः संतिष्ठसे, एवं खलु तव पुत्र ! श्रेणिको राजाऽत्यन्तस्नेहानुरागरक्तः ॥५२॥ पदार्थान्वयः-तएणं-तब, सा चेल्लणा देवी-वह महारानी चेलणा, कणयं कुमारकोणिक कुमार से, एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगी, एवं खलु पुत्ता - हे पुत्र ! इस प्रकार समझो, तुमंसि ममं गन्भे आभूए समाणे- जब तूं मेरे गर्भ में आया था तब, तिण्हं मासाणं-त.न महीने, बहुपडिपुन्नाणं-अच्छी तरह पूर्ण होने पर, ममं-मेरे हृदय में, अयमेयारूवे- इस प्रकार का, दोहले पाउन्भूए-- दोहद उत्पन्न हुआ था, धन्ना णं तो अम्मयाओ-कि धन्य हैं वे मातायें, यावत्-यावत्, अंगपडिचारियाओ निरवसेसं भाणियव्वं-इस संकल्प से लेकर अंगपरिचारिकाओं (सेविकाओं) द्वारा जो जो कार्य किये गए थे और जो कुछ अभय कुमार ने किया था वह सब कार्य उसने बतला दिये, जाव-वहां तक जब उसे कुरड़ी पर फेंका गया था और उसकी अंगुली के अग्रभाग को मुर्गे ने चोंच से छील दिया था, उसे श्रेणिक ने चेलना को लाकर दिया था और उसे यह भी बतलाया था कि, जाहे वि य णं तुम और जब भी तुम, वेयणाए-वेदना से, अभिभूए-अभिभूत हो जाते थे, महया-महान्, जाव तुसिणीए संचिट्ठसि-जब तक तुम चुप होकर शान्त नहीं हो जाते थे (तब तक श्रेणिक तुम्हारी अंगुली के खून और पीक को चूस-चूस कर थूकते रहते थे, एवं खलु तव पुत्ता--हे पुत्र ! इस प्रकार (तुम स्वयं ही समझ सकते हो कि), सेणिए राया-राजा श्रेणिक, अच्चंतनेहाणुरागरत्ते-अत्यन्त स्नेह से तुम पर अनुरक्त था ॥५२॥ मूलार्थ-तब महारानी चेलना कोणिक कुमार को इस प्रकार कहने लगी- हे पुत्र! तुम इस प्रकार समझो कि “जब तू मेरे गर्भ में आया था, तब तीन महीने अच्छी तरह पूरे हो जाने पर मेरे हृदय में इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ था कि "धन्य हैं वे मातायें जो यावत् अर्थात् अंग-परिचारिकाओं द्वारा जो-जो कार्य किये गए थे और जो कुछ भी अभय कुमार ने किया था वे सब कार्य उसवै कोणिक को बतला दिये
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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