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________________ वर्ग-प्रथम] (८८) [निरयावलिका मम सेणिए राया-श्रेणिक राजा तो मुझे, एवं इस प्रकार, मारेउ-मारने के लिये इच्छुक, बंधिउं-बांधने के लिये इच्छुक, निच्छुभिउकामए णं-मुझे राज्य से बाहर करने के लिये इच्छुक था, अम्मो-हे माता, ममं सेणिए राया- मुझे श्रेणिक राजा, तं-अतः, अम्मो-हे माता, मम-मुझ पर, सेणिए राया-श्रेणिक राजा, अच्चंतनेहाणुरागरत्ते - कैसे अत्यन्त स्नेह राग से युक्त था ॥५१।। मूलार्म-तत्पश्चात् चेलना देवी ने राजा कूणिक को इस प्रकार कहा-"हे पुत्र ! मुझे कैसे प्रसन्नता, उत्सव, हर्ष व आनन्द हो सकता है ? क्योंकि तूने उस देव एवं गुरु के तुल्य अपने पिता राजा श्रेणिक को हथकड़ियों एवं बेड़ियों से बांध रखा है जिनका तुम्हारे प्रति गहरा स्नेह व राग है, ऐसे पिता को कैद करके तूने स्वयं का राज्याभिषेक किया है, इसलिए मेरे मन में हर्ष उत्सव, आनन्द कैसे हो सकता है ? तत्पश्चात् वह राजा श्रेणिक, चेलना देवी वी बात सुनकर इस प्रकार कहने लगा-“हे माता! आप कैसे कह सकती हैं कि मुझ पर राजा श्रेणिक का अत्यंत रागात्मक स्नेह है ? टोका-प्रस्तुत सूत्र में राजा कूणिक ने अपनी माता को प्रणाम करने के बाद अपने किये हुए कुकृत्य का समर्थन माता चेलना से करवाना चाहा, किन्तु महारानी चेलना पति के प्रति समर्पित रानी थी। वह अपने पति के प्रति अथाह स्नेह रखती थी। श्रेणिक की कंद के कारण वह सर्वाधिक दुःखी रहने लगी। प्रस्तुत सूत्र से रानी चेलना की स्पष्ट-वादिता का भी पता चलता है । रानी चेलना कहती है कि मुझे तेरे राजा बनने की खुशी कैसे हो सकती है ? तूने अपने देव-गुरु तुल्य पिता को कारागार में डाल दिया है, तुझे अपने पिता की महानता व तेरे प्रति स्नेह का भी ध्यान नहीं रहा । रानी चेलना देवी की बात सुनकर राजा कुणिक ने अपनी माता से पूछा- "हे माता! आप कैसे कहती हैं कि मेरे पिता राजा श्रेणिक मेरे से बहुत स्नेह व राग रखते हैं ? इस सूत्र से सिद्ध होता है कि कोणिक ने राजा श्रेणिक को कैद में डालते समय माता से विचार-विमर्श नहीं किया था। इसी कारण माता ने आशीर्वाद के स्थान पर उपालम्भ दिया। पियं और जणगं "पिता" और "जनक" ये दोनों शब्द पिता के पर्यायवाची शब्द हैं तथा पियं शब्द वल्लभ पति आदि अर्थों में भी प्रयुक्त होता है । गुजराती अर्धमागधी कोष पृष्ठ ५४६ में ऐसा ही कथन है ।।५१॥ मूल-तएणं सा चेल्लणा देवी कूणियं कुमारं एवं वयासो---एवं खलु पुत्ता ! तुमंसि ममं गन्भे आभूए समाणे तिण्हं मासाणं बहुपडि
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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