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वर्ग - प्रथम ]
( ८६ )
[निरयावलिका
पदार्थान्वयः - एणं - तत्पश्चात् से कूणिए राया- वह राजा कोणिक, अन्नया कयाईएक बार फिर कभी, हाए - उसने स्नान किया, जाव० सव्वालंकार विभूसिए - और सभी प्रकार के अलंकारों से सुसज्जित होकर, चेल्लणाए देवीए - महारानी चेलना देवी के, पाय वन्दए- चरणों में नमस्कार करने के लिये, हव्वमागच्छइ - शीघ्रता से आता है।
तएण - तत्पश्चात् से कूणिए राया- वह राजा कूणिक, चेल्लणं देवि - महारानी चेलना देवी को, ओहय०० - उदास एवं मानसिक संकल्प के विपरीत कार्य होने के कारण खिन्न तथा, झियायमाणि- आर्त ध्यान करती हुई को, पासति - देखता है, पासित्ता और उसे उदास देख कर, चेल्लणाए देवीए -माता चेलना देवी के, पायग्गहणं करेइ-चरण पकड़ लेता है, करिताऔर चरण-वन्दन करके, चेल्लणं देवि - महारानी चेलना देवी से एवं वयासी - इस प्रकार बोला, किणं अम्मी ! - माता ऐसी क्या बात है ?, तुम्हं न तुट्ठी वा - आज आपको सन्तोष नहीं हुआ ? न ऊस वा - कोई आपको खुशी नहीं हुई ? हरिसे वा हर्ष नहीं हुआ ? नाणंदे वा - आपको आनन्द नहीं हुआ ? जंणं -जब कि, अहं सयमेव- मैं स्वयं, रज्जसिरि-राज्य - वैभव का उपभोग करते हुए, जाव विहरामि - आनन्द - पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहा हूं ।
मूलार्थ - तदनन्तर किसी दिन वह राजा कूणिक स्नान करके ( और बलिकर्म
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प्रायश्चित्त आदि मंगल कार्य करने के अनन्तर ) सर्वविध राजा के योग्य आभूषण पहन कर अपनी माता चिल्लणा देवी के पास चरण-वन्दनार्थ पहुंचा । तब राजा कूणिक ने माता चेल्लना देवी को मानसिक संकल्प से विपरीत कार्य होने के कारण आर्तध्यान करते हुए देखा - चिन्तातुर देखा । देखते ही उसने माता चेलना देवी के चरण पकड़ लिये और माता चेलना देवी से इस प्रकार कहा - " मां ! ऐसी क्या बात है कि आज आपका मन सन्तुष्ट नहीं है, आज आपके मन में उत्साह हर्ष एवं आनन्द नहीं है, जब कि मैं स्वयं राज्य- वैभव का उपभोग करते हुए चैन की जिन्दगी जी रहा हूं, अर्थात् आपको मेरा राजा बन जाना क्या अच्छा नहीं लग रहा ||५० ॥
टीका - पुत्र कितना भी दुष्ट क्यों न हो, वह पिता के प्रति क्रूर व्यवहार कर सकता है, किन्तु अपनी माता के प्रति वह कभी क्रूर नहीं हो सकता । अतः कूणिक ने पिता को बांध कर जेल में डाल दिया, किन्तु माता की चरण-वन्दना के लिये वह समय-समय पर आता ही रहता था ।
कोई भी मां पुत्र से उदासीन न होते हुए भी अपने पति के प्रति भी अपनी निष्ठा एवं कर्तव्य को भूल नहीं सकती। कूणिक अब राजा बन गया था - अतः स्वच्छन्द था, इसलिये वह उसे कुछ विशेष कहना उचित न मानते हुए अपने पति राजा श्रेणिक को बन्दी बना दिये जाने के कारण