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वर्ग - प्रथम ]
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[ निरयाबलिका
ग्यारह भागों में विभक्त करके स्वयं राज्य-सुख भोगते हुए राज करें और प्रजा का पालन करते हुए सुख-पूर्वक जियें ॥ ४८ ॥
टीका - प्रस्तुत सूत्र राजा श्रेणिक के कृतघ्न एवं क्रूर पुत्रों के हृदय में उमड़ते लोभ का वर्णन किया है और उस दाम नीति पर प्रकाश डाला है जिसके अनुसार उसने अपने भाइयों को भी अपने जैसा लोभी, क्रूर एवं पितृघाती बना लिया ।
लोभ मनुष्य से क्या नहीं करवा देता ।
उत्थानिका - तदनन्तर कूणिक ने क्या किया इसका वर्णन करते हुए शास्त्रकार कहते हैंमूल- तरणं ते कालादीया दस कुमारा कूणियस्स कुमारस्स एयमट्ठे विणणं पडिसुर्णेति ।
तएण से कूणिए कुमारे अन्नया कयाइं सेणियस्स रन्नो अंतरं जाणाइ, जाणित्ता सेणियं रायं नियलबंधणं करेइ, करिता अप्पाणं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिचावेइ । तएणं से कूणिए कुमारे राया जाए महया० ॥ ४६ ॥
छाया - ततः खलु स कूणिकः कुमारः अन्यदा कदाचित् कूणिकस्य राज्ञोऽन्तरं जानाति, ज्ञात्वा श्रेणिकं राजानं निगडबन्धणं करोति, कृत्वा आत्मानं महता महता राज्याभिषेकेण भिषेचयति । ततः खलु स कूणिकः कुमारो राजा जातो महा० ॥४६॥
पदार्थान्बयः—तएणं तत्पश्चात्, ते कालादीया इस कुमारा - वे काल कुमार आदि दस राज कुमार, कूणियस्स कुमारस्स - कूणिक कुमार के एयमट्ठे- इस विचार को, विणणं परिसुति - विनयपूर्वक ध्यान से सुनते हैं, तएणं - तदनन्तर, कूणिए कुमारे -- कूणिक कुमार, अन्नया कयाइ - किसी समय (मौका पाते ही), सेणियस्स रन्नो- राजा श्रेणिक के, अन्तरं जाणा - कुछ अन्दरूनी रहस्यों को जान लेता है, जाणिता - और जान कर श्रेणिकं राजानं - राजा श्रेणिक को, निगड़ बन्धनं करोति-हथकड़ियों और बेड़ियों से बांध देता है, करिता और बांधकर, अप्पाणं - अपने आपको, महया महया - विशाल से विशाल राज्याभिषेक ( महोत्सव पूर्वक), अभिसिचावेइ - अपने आपको अभिषिक्त करा देता है, तएणं - तत्पश्चात्, से कूणिए कुमारे राया जाए - कूणिक कुमार स्वयं ही राजा बन गया, महया महवा - महान से महान् ||४६||