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वर्ग - प्रथम 1
( ८२ )
[ निरयावलिका
श्रेणिक को हथकड़ियों एवं बेड़ियों आदि से जकड़ कर कारागार में डाल दूं और बहुत बड़े राज्याभिषेक से ( राज्याभिषेक महोत्सव आयोजित कर ) अपना राज्याभिषेक कर लूं । उसने इस प्रकार सोच-विचार कर ऐसा करने का दृढ़ निश्चय कर लिया और वह राजा श्रेणिक के आन्तरिक छिद्रों अर्थात् कमजोरियों तथा सहायकों से रहित होने का मौका देखते हुए समय व्यतीत करने लगा ॥ ४७ ॥
टीका - प्रस्तुत सूत्र में यह प्रदर्शित किया गया है कि लोभ बहुत बुरी बला है । लोभ उत्पन्न हो जाने पर मनुष्य के हृदय में किसी बड़े छोटे का भी खयाल नहीं रह जाता, वह कर्तव्य - अकर्तव्य को भी भूल जाता है।
राजकुमार कूणिक पर स्वयं राजा बनने का भूत सवार हो गया तो उसने अपने पिता को ही हथकड़ियों और बेड़ियों में बांध कर जेल में डाल देने का निश्चय कर लिया ।
इस उदाहरण को देखते हुए मनुष्य को अत्यधिक लालसाओं के चक्कर में नहीं फंसना चाहिये । कूणिक के पास आठ राज महल थे, उसे सुखोपभोग में कोई रोक-टोक नहीं थी, फिर भी वह पिता के विपरीत हो गया ||४७ |
उत्थानिका - तदनन्तर राज कुमार कूणिक ने अपने पिता को कैद करने का षड्यन्त्र कैसे रचा - अब सूत्रकार इस विषय का वर्णन करते हैं -
मूल-तएण से कूणिए कुमारे सेणियस्स रन्नो अंतरं वा जाव मम्मं वा अलभमाणे अन्नया कयाइ कालादीए दस कुमारे नियघरे सहावेs सावित्ता एवं वयासी - "एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे सेणियस्स रन्नो वाघाएणं नो संचाएमो सयमेव रज्जसिरिं करेमाणा पालेमाणा विहरित्तए, तं सेयं देवाणुप्पिया ! अम्हं सेणियं रायं नियलबंधणं करेत्ता रज्जं च रठ्ठे च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च जयवणं च एक्कारसभाए विरिचित्ता सयमेव रज्जसिरिं करेमाणानं जाव विहरितए ||४८ ॥
छाया - ततः खलु स कूणिक श्र ेणिकस्य राज्ञोऽन्तरं वा यावत् ममं वा अलभमानः अन्यदा कदाचित् कालादिकान् दशकुमारान् निजगृहे शब्दयति, शन्दयित्वा एवमवादीत् - एवं खलु देवान