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निरयावलिका]
('८१)
[वर्ग-प्रथम mium-rimurraimurrrrrrrrrrrrrrrrrrr-1-1___मूल-तएणं तस्स कूणियस्स कुमारस्स अन्नया पुव्वरत्ता० जाव समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं सेणियस्स रन्नो वाघाएणं नो संचाएमि सयमेव रज्जसिरिं करेमाणे पालेमाणे विहरित्तए, तं सेयं मम खलु सेणियं रायं निलयबंधणं करेत्ता अप्पाणं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचावित्तए, त्तिकटु एवं संपेहित्ता सेणियस्स 'रन्नो अंतराणि य विरहाणि य पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरइ ॥४७॥
छाया-ततः खलु तस्य कूणिकस्य कुमारस्य अन्यदा पूर्वरत्रा० यावत्समुत्पद्यत-एवं खलु अहं श्रेणिकस्य राज्ञो व्याघातेन न शक्नोमि स्वयमेव राज्यश्रियं कुर्वन् पालयन् विहंतु, तच्छे यो मम खलु श्रोणिकं राजानं निगडबन्धनं कृत्वा आत्मानं महता-महता राज्याभिषेकेणाभिषेचयितुम्, इति कृत्वा एवं संप्रेक्षते, संप्रेक्ष्य श्रेणिकस्य राज्ञोऽन्तराणि च छिद्राणि च विरहान् च प्रतिजाग्रद् विहरति ।
॥४७॥
पदार्थान्वयः-तएणं- तब, तस्स कूणियस्स-उस राज कुमार कूणिक (के हृदय में), अन्नया पूज्वरता-(कुछ समय के बाद) अर्धरात्रि में), जाव-यावत्-यह विचार, समुप्पज्जिस्थाउत्पन्न हुआ कि, एवं खलु-इस प्रकार जीवन व्यतीत करते हुए, अहं-मैं, सेणियस्स रनोराजा श्रेणिक के, वाघाएग-प्रतिबन्धों के होते हुए (स्वतन्त्रता पूर्वक), नो संचाएमि-प्राप्त करने में असमर्थ ही रहूंगा, सयमेव-मैं स्वयं, रजसिरि करेमाणे-राज्य श्री का उपभोग करने में, पालेमाणे विहरित्तए-अपने परिवार का पालन-पोषण करते हुए जीवन-यापन करने में, . 'तं सेयं मम खलु-अत: मेरे लिये यही कल्याणकारी होगा कि मैं, सेणियं रायं-राजा श्रेणिक को, निलयबंधणं करेत्ता-हथकड़ियों और बेड़ियों से बांध कर (कारागार में डाल दूं), अप्पाणं-और अपने आप को, महया-म हया-महान् से भी महान्, रायाभिसेएणं-राज्याभिषेक से, अभिमिचावित्तए-अभिषिक्त कर लेना. त्ति कठट-ऐसा विचार करके, एवं संपेड-उसने मन में यह (कार्य करने का) निश्चय कर लिया, संपेहिता-और यह निश्चय करके, सेणियस्स रन्नो- राजा श्रेणिक के, अन्तराणि-आन्तरिक (अन्दरूनी), छिद्दाणि-छिद्रों अर्थात् दोषों एवं कमजोरियों को, बिरहाणि-सहायकों से रहित होने के अवसर को, पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे-सावधानी से देखते हुए, विहरइ-अपना समय व्यतीत करने लगा ॥४७।।
मूलार्थ-तदनन्तर किसी समय अर्ध रात्रि में राजकुमार कुणिक के हृदय में यह विचार उत्पन्न हुआ कि राजा श्रेणिक के प्रतिबन्धों के कारण मैं अपनी इच्छा से राज्यवैभव का उपभोग नहीं कर पाता हूं, अत: मेरे लिये यही श्रेयस्कर होगा कि मैं राजा