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निरयावलिका]
(७६)
[वर्ग-प्रथम
अंगुलिया कुक्कुडपिच्छएणं दूमिया, तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं 'कूणिए'। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधिज्ज करेंति 'कणिय' त्ति ॥४५॥
___ छाया-ततः खलु तस्य दारकस्याम्बापितरौ तृतीये दिवसे चन्द्रसूर्यदर्शनं कारयतः यावत् संप्राप्ते द्वादशाहे दिवसे इममेत पं गुणनिष्पन्नं नामधेयं कुरुतः यस्मात् खलु अस्माकमस्य वारकस्य एकान्ते उत्कुरुटिकायामुज्झ्यमानस्याङ्गुलिका कुक्कुटपिच्छकेन दूमिता (कूणिता) तत् भवतु खलु अस्माकमस्य वारकस्य दामधेयं 'कूणिकः । ततः खलु तस्य दारकस्य अम्बापितरौ नामधेयं कुरुतः 'कूणिक.' इति ॥४॥
पदार्थान्वयः-तएणं-तदनन्तर, तस्स दारगस्स-उस पुत्र को, अम्मापियरो-माता-पिता ने, तइये दिवसे-तीसरे दिन, चंद-सूर-दंसणियं-चन्द्र-सूर्य के दर्शन, करेंति-करवाते हैं, जाव०यावत्, संपत्ते बारसाहे दिवसे-बारहवां दिन आने पर, अयमेयास्वं- इस प्रकार का, गुणनिष्पन्नं-गुणों के अनुरूप, . नामधिज्ज-नाम, करेंति-करते हैं, जम्हाणं-क्योंकि, अम्हं इमस्स दारगस्स-हमारे इस पुत्र की, एगते उक्कुरुडियाए-निर्जन स्थान में कुरड़ी पर, पज्झिज्जमाणस्स-फेंके जाने के बाद, अंगुलिया-अंगुलि, कुक्कुडपिच्छएणं-मुर्गे ने अपनी चोंच से, दूमिया आहत कर दी थी, तं होउणं - इसलिये होना चाहिये, अम्हं इमस्स दारगस्स-हमारे इस शिशु का, नामधेज्ज-नाम, कृणिए-कूणिक, तएणं-तदनन्तर, तस्स दारगस्स-उस शिशु का, अम्मा-पियरो-माता-पिता ने, नामधिज्ज करेंति-नामकरण किया, "कूणिय" इतिकूणिक ।।४।।
मूलार्थ-तदनन्तर माता-पिता अपने उस शिशु को तीसरे दिन चन्द्र-सूर्य के दर्शन करवाते हैं और फिर बाहरवां दिन आने पर गुणों के अनुरूप उसका इस प्रकार का नाम करते हैं, क्योंकि हमारे इस बालक को एकान्त में कुरड़ी पर फेंकने के बाद इसकी अंगुली को मुर्गे ने अपनी चोंच से कूणित कर दिया था, अर्थात् आहत कर दिया था, इसलिये हमारे इस बालक का नाम "कूणिक" होना चाहिये । तदनन्तर उसके माता-पिता ने अपने शिशु का नाम “कणिक" ही रख दिया ॥४५।।
टीका-प्रस्तुत सूत्र में पुत्र-जन्म पर माता-पिता तीसरे दिन बच्चे को सूर्य - चन्द्र के दर्शन करवाते थे और बारहवें दिन उसका नामकरण-संस्कार करते थे-इस सांस्कृतिक परम्परा का उल्लेख किया गया है।