________________
निरयावलिका ]
(७७)
(वर्ग-प्रथम
तए णं से दारए निव्वए निव्वेयणे तुसिणीए संचिठ्ठइ । जाहे वि य णं से दारए वेयणाए अभिभूए समाणे महया महया सद्देणं आरसइ ताहे वि य णं सेणिए राया जेणेव से दोरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दारगं करतलपुडेणं गिण्हइ, तं चेव जाव निव्वेयणे तुसिणीए संचिट्ठइ ॥४४॥
छाया-ततः खलु तस्य दारकस्य एकान्ते उत्कुरुटिकायामुज्झ्यमानस्याऽप्राङ्गुलिका कुक्कुटपिच्छकेन दूना चाऽप्यभूत्, अभीक्ष्णमभीक्ष्णं पूयं च शोणितं चाभिनिस्त्रवति ।
ततः खलु स दारको वेदनाभिभूतः सन् महता महता शब्देन आरसति । ततः खलु श्रेणिको राजा तस्य दारकस्याऽऽरसितशब्दं श्रुत्वा निशम्य ववव स दारकस्तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य तं वारक करतलपुटेम गृह्णाति, गृहीत्वा तामनांगलिकामास्ये प्रक्षिपति, प्रक्षिप्य पूयं च शोणितं चास्येन आमशति । ततः खलु सादारको निवृत्तोनिवेदनस्तूष्णीकः संतिष्ठते । यदापि च खलु स दारको वेदनयाऽभिभूतः सन् महता-महता शब्देन आरसति तदाऽपि च खलु श्रोणिको राजा यत्रैव स दारकस्त्रवोपागच्छति, उपागत्य तं वारक करतलपुटेन गृह्णाति, तदेव यावत् निवेदनस्तूष्णीकः संतिष्ठते ॥४४॥
पदार्थान्वयः-तएणं-तदनन्तर, तस्ल दारगस्स-उस बालक की, एगते-निर्जन स्थान में, उक्कुरुडियाए-कूड़े-कचरे के ढेर पर, उज्झिज्जमाणस्स-फेंके हुए की, अम्मं गलियाए-अंगली का अग्रभाग, कक्कुट-पिच्छकेन-मुर्गे की चोंच से, दूमिया यावि होत्था-घायल कर दिया गया था, अभिक्खणं-अभिक्खणं-(और उससे) बार-बार, पूयं च सोणियं च-पीप और खून, अभिनिस्सवइटपकते रहते थे, तएणं-तब, से दारगे-वह बालक, वेयणाभिभूए समाणे-तीखी पीड़ा से पीड़ित होकर, महया-महया-ऊंची-ऊंची, सट्टेणं-आवाज से (चीखते हुए), आरसति-रोने लगता था, तएणं-तब, सेणिए राया-राजा श्रेणिक, तस्स दारगस्स-उस बालक के, आर. सितसई-आर्तनाद को, सोच्चा-सुनकर, निसम्म-कुछ सोच कर, जेणेव से दारए-जहां पर वह बालक होता, तेणेव उवागच्छइ-वहीं आ जाता, उवागच्छित्ता-और प्राकर, तं दारगं-उस बालक को, करतलपुडेणं-अपने हाथों से (हथेलियों से), गिण्हइ-उठा लेता था, गिण्हित्ता-और उठाकर, तं अग्गं गुलियं-अंगुलि के उस घाव वाले भाग को, आसयंसि-मख में, पक्खिवेइ-डाल लेता है, पक्खिवित्ता-बोर मुख में डालकर, पूयं च सोणियं च-पीप और खून को, आसएणं-मुंह से, आमुसइ-चूस लेता है (और उसे थूक देता है), तएणं-तब वह, दारए-वह बालक, निव्वए-शान्त, निव्वेयणे-पीड़ा से मुक्त होकर, तूसिणीए संचिठहचुप हो जाता था, जाहे वि य गं दारए-जब भी वह बालक, वेयणाए अभिभूए समाणे-पीड़ा