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________________ वर्य-प्रथम . ............... (७६) ....... __ [निरयावलिका । “अपना खून छिपता नहीं" इस उक्ति के अनुरूप कुरड़ी पर पड़े बालक को देखते ही उसे विश्व स हो गया कि यह उसी का पुत्र है और उसे यह समझते देर न लगी कि यह कृत्य चेलना ने ही किया है, अतः वह बालक को लेकर सीधा चेलना देवी के महल में ही पहुंचा। क्रोधावेश में मनुष्य ऊंच-नीच जो भी मुंह में आता है वही कह देता है। यद्यपि महारानी चेलना उसकी प्रिय रानी थी, उसके दोहद की पूर्ति के लिये उसने क्या कुछ नहीं किया था, किन्तु बालक के त्याग रूप अपराध पर उसे क्रोध आ ही गया और उसने उसे काफी फटकारा। मां होकर भी उसने सन्तान को कूड़े के ढेर पर फिकवा दिया, इसलिये वह अत्यन्त ही लज्जित हुई और राजा ने शायद नौकर-चाकरों की उपस्थिति में उसे फटकारा होगा, इसलिये वह बाहरी रूप से भी लज्जित हुई। ___ नौकर-चाकर जब यह जानेंगे कि जिस बालक को इसने फिकवाया था अब राजा के आदेश से उसी का पालन-पोषण कर रही है उस समय उसे और भी लज्जा का अनुभव होता रहा होगा जिसे शास्त्रकार ने "विड्डा" शब्द द्वारा ध्वनित किया है। __ "विड्डा" शब्द का संस्कृत रूपान्तर "व्यालीका"-भी हो सकता है जिसका अर्थ हो सकता है कि "माता के कर्तव्य के विपरीत आचरण करने के कारण वह लज्जित हो रही थी।" राजा की "मुंहलगी" पत्नी होने पर भी उसने राजा के द्वारा दी गई डांट-फटकार को चुपचाप सहन कर लिया, इसके द्वारा उसने “पत्नी के कर्तव्य" पर अच्छा प्रकाश डाला है और उसने शीघ्रता में पुत्र को फिकवाने का जो निर्णय लिया था उसके कारण लज्जित होते हुए भी उसने पति द्वारा सौगन्ध देने पर बालक का यथोचित पालन-पोषण किया। इससे यह शिक्षा मिलती है कि झूठो सौगन्ध कभी नहीं खानी चाहिये ।।४३।। .... मूल-तए में तस्स दारगस्स एगते उक्कुरुडियाए उज्झिज्जमाणस्स अग्गं गुलियाए कुक्कुडपिच्छएणं दूमिया यावि होत्था, अभिक्खणं अभिक्खणं पूयं च सोणियं च अभिनित्सवइ। . तए णं से दारए वेयणाभिभूए समाणे महया महया सद्देणं आरसइ। तए णं सेणिए राया तस्स दारगस्स आरसितसई सोच्चा निसम्म जेणेव से दारए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दारगं करतलपुडेणं गिव्हइ, गिण्हित्ता तं अग्गं गुलियं आसयंसि पक्खिवइ, पक्खिवित्ता पूयं च सोणियं च आसएणं आमुसइ ।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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