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________________ वर्ग-प्रथम] (७४) [निरयावलिका छाया ततः खलु सः श्रेणिको राजा अस्या कथाया लब्धार्थः सन् यत्रवाशोकवनिका तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य तं दारकमेकान्ते उत्कुरुटिकायामुज्झितं पश्यति, दृष्ट्वा आशुरक्तः यावत् मिसिमिसीकुर्वन् तं दारकं करतलपुटेन गृह्णाति, गृहीत्वा यत्रव चेल्लना देवी तत्रैवोपागच्छति, चेल्लनां देवीमुच्चावचाभिराकोशनाभिराकोशति, आकश्य उच्चावचाभिनिर्भर्त्सनाभिनिर्भसंयति, निर्भत्स्य, एवमुद्धर्षणाभिरुद्वर्षयति, उद्धर्म्य एवमवादीत्-किमर्थं खलु त्वं मम पुत्रमेकान्ते उत्कुरुटिकायामुज्झयसि ? इति कृत्वा चेल्लनां देवीमच्चावचशपथशापितां करोति, कृत्वा एवमवादीत्-वं खलु देवानुप्रिये ! एनं दारकमनुपूर्वेण संरक्षन्ती संगोपयन्ती संवर्द्धय । ततः खल सा चेल्लना देवी श्रेणिकेन राजा एवमुक्ता सती लज्जिता वीडिता विड्डा करतलपरिगृहीतं श्रोणिकस्य राज्ञो विनयेन एतमर्थ प्रतिशृणोति, प्रतिष त्य तं दारकमनुपूर्वेण संगोपयन्ती संवर्धयति ।। ४३ ॥ पदार्थान्वथः-तएणं से सेणिए राया-तत्पश्चात् राजा श्रेणिक ने (जब), इमोसे कहाए लट्ठ समाणे-इस कथा (समाचार) को सुना और जाना तो वह, खेणेव असोगवणिया-जहां पर अशोक वाटिका थी, तेणेव-वहीं पर, उवागच्छइ-(स्वयं ही) माता है, उवागच्छित्ता-और वहां आकर, तं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उझियं- उसने उस निर्जन स्थान में एक कड़े-कचरे के ढेर पर फेंके गए उस बालक को, पासेइ-देखा, पासित्ता-देखकर, आसुरुत्ते- शीघ्र ही आंखें लाल करके अर्थात् क्रोध-पूर्वक, जाव०-यावत्, मिसिमिसेमा-क्रोधाग्नि से जलते हुए, तं दार-कुरडी पर पड़े हुए उस बालक को, करतलपुडेगं-दोनों हाथों से, गिण्हइ-ग्रहण करता है-उठा लेता है, गिण्हिता-(और) आकर, जेणे व चेल्लणादेवी-जहां पर महारानी चेलना देवी पी, तेणव-वहीं पर; उवागच्छइ-आ जाता है, उवागच्छित्ता-और आकर, चेल्लण देबि-बेलना देवी को, उच्चावयाहि-ऊंचे शब्दों में, आओसणाहि-आक्रोश भरे शब्दों द्वारा, आओसा-डांटता है, माओसित्ता- और डांट कर, उच्चावयाहि-ऊंच नीच शब्दों, निभच्छणाहिऔर भर्त्सनानों द्वारा, निभच्छेई-उसकी भत्स्ना करता है, निभच्छित्ता- और भत्स्ना करके, एवं-इस प्रकार, उद्धंसनाहि - फटकार द्वारा, उद्धंसेइ-फटकारता है, उद्धंसित्ता-और फटकार कर, एवं वयासी-इस प्रकार कहा, किस्स णं तुम-किस लिये तुमने, मम पुत्तं-मेरे पुत्र को, एगन्ते--शून्य स्थान में, उक्कुरुडियाए-कूड़े-कचरे के ढेर पर, उज्झावेसि-तुमने फिकवाया हैं, तिकट्ट-ऐसा कह कर, चेल्लन देवी-चेलना देवी को, उच्चावयसवहसावियं करेइ-ऊंच नीच शब्द कह कर शपथ (सौगन्ध) दिलवाता है, करिता-और सौगन्ध दिलवा कर, एवं वयासी-उसको इस प्रकार कहा, तुमचं देवाणुप्पिये-हे देवानुप्रिये तुम्हीं, एवं दारगं-इस नवजात बालक की, अणुपुव्वेणं-यथाक्रम अर्थात् इसको अवस्था के अनुसार क्रम से, सारखेमाणीरक्षा करते हुए, संगोवेमाणी-पालन-पोषण करते हुए, संवड्ढेहि-इसका संवर्धन करो, अर्थात् इसे बड़ा करो।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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