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निरयावलिका]
(७३)
[वर्ग - प्रथम
• टीका- उपर्युक्त वर्णन से यह ध्वनित होता है कि महारानी चेलना द्वारा गर्भ-पात के सभी प्रयास केवल अपने कुल की रक्षा के लिये ही किये गए, क्योंकि अपने कुल की रक्षा प्रत्येक नारी का सांस्कृतिक कर्तव्य है।
चेलना मांसाहार नहीं करती थी, अतः उसके हृदय में दया थी, मांसाहारी प्रायः निर्दयी होते हैं। यदि वह निर्दयी होती तो बालक को फैंकने का आदेश न देकर स्वयं ही उसे मार सकती धी, अथवा चुपके-चुपके मरवा सकती थी, सम्भवतः मातृवात्सल्य के कारण उसने सोचा होगा कि हो सकता है कि फैंके हुए बालक को कोई निस्सन्तान दम्पति ले जायें और उसका पालन-पोषण करने लगे।
"दासचेडी" उस दासी को कहा जाता था जो रानियों की अत्यन्त विश्वस्त और उसके निजी कार्यों को करनेवाली होती थी। अन्यथा "दासी" शब्द से ही काम चल सकता था।
बालक आखिर राजकुमार था और भावी राजा था, अतः उसे कड़े-कचरे के ढेर पर फेंके जाने पर भी वहां प्रकाश फैल गया, क्योंकि ऐसा प्रकाश भी एक राज-लक्षण है ॥४२॥
मूल-तएणं से सेणिए राया इमोसे कहाए लखळे समाणे जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झियं पासेइ, पासित्ता आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे त दारगं करतलपुडेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेल्लणं देवि उच्चावयाहिं आओसणाहिं आओसइ, आओसित्ता उच्चावयाहिं निम्भच्छणाहिं निभच्छेइ, निभच्छित्ता एवं उद्धंसजाहिं उद्धंसेइ, उद्धंसित्ता एवं वयासी-किस्स णं तुम मम पुत्तं एगते उक्कुरुडियाए उज्झावेसि ? त्तिकटु चेल्लणं दैवि उच्चावयसवहसावियं करेइ, करित्ता एवं वयासी-तुम णं देवाणुप्पिए ! एयं दारगं अणुपुत्वेणं सारक्खमाणो संगोवेमाणी संवड्ढेहि।
तएणं सा चेल्लणा देवी सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणी लज्जिया विलिया विड्डा करयलपरिग्गहियं० सेणियस्स रन्नो विणएपो एयमलैं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता तं दारयं अणुपुटवेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवड्ढइ ॥४३॥