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________________ वर्ग - प्रथम ] ( ७२ ) [ निरयाबलिका तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं दारगं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झाइ । तणं तेणं दारएणं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झितेणं समाणेणं सा असोगवणिया उज्जोरिया यावि होत्या ॥ ४२ ॥ छाया - ततः खलु सा दासवेटी चेल्लनया देव्या एवमुक्ता सती करतल० यावत् कृत्वा चेल्लनाया देव्या एनमर्थं विनयेन प्रतिशृणोति, प्रतिश्रुत्य तं दारकं करतलपुटेन गृह्णाति गृहीत्वा areafter तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य तं दारकमेकान्ते उक्कुरुटिकायामुज्झति । ततः खलु तेन दारकेण एकान्ते उत्कुरुटिकायामुज्झितेन सता साऽशोकवनिका उद्योतिता चाप्यभवत् ।४२|| पदार्थान्वयः -- तएर्ण – तत्पश्चात् सा दासचेडी - वह चाकर दासी, चेलणाए देवीए - महारानी चेलना के द्वारा, एवं बुसा समाणी - ऐसा प्रादेश देने पर करयल जाव० कट्टु - दोनों हाथ जोड़ कर, चेल्लणाए देवीए - महारानी चेलना के, एयमट्ठे- इस अर्थ अभिप्राय या आदेश को, विणणं- विनय-पूर्वक, पडिसुणेइ- सुनती है, पडिणित्ता ओर सुनकर, तं दारगं - उस नवजात शिशु को, करतलवुडेणं-दोनों हाथों के संपुट में ग्रहण करती है और, गिव्हित्ता - ग्रहण करके, जेणेव असोगवणिया - जहां पर अशोक वाटिका थी, तेणेव - वहां पर, उवागच्छइ - आ जाती है (और), उवागच्छित्ता- वहां आकर, तं दारंगं-उस शिशु को, एगन्ते- सर्वथा एकान्त अर्थात् जन-शून्य स्थान देखकर, उक्कुरुडियाए- कूड़े-करकट के ढेर पर, उज्झाई–फेंक देती है। तएणं - तदनन्तर, तेणं बारएणं - उस शिशु को, एगन्ते उक्कुरुडियाए - निर्जन स्थान में कूड़े-कचरे के ढेर पर फेंके जाने पर, सा असोगवणिया - वह अशोक वाटिका, उज्जोवियां - प्रकाशमयी, यावि- होत्या - हो गई ||४२॥ मूलार्थ-तत्पश्चात् वह चाकर दासी महारानी चेलना देवी के द्वारा दिये गए आदेश को दोनों हाथ जोड़कर उसके अभिप्राय एवं आदेश को सुनती है और सुनकर दोनों हाथों के सम्पुट में उस शिशु को ग्रहण करती है फिर उस शिशु को ग्रहण करके (राजा की) अशोक वाटिका थो वहां आती है । वहां आकर उस नवजात शिशु को एकान्त अर्थात् सर्वथा जनशून्य स्थान देखकर कूड़े-करकट के ढेर पर फेंक देती है । उस बालक को एकान्त में कूड़े-करकट के ढेर पर फेंकते ही वह अशोक वाटिका प्रकाशमयी हो गई - अर्थात् वहां प्रकाश ही प्रकाश छा गया ॥ ४२ ॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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