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________________ 'निरयावलिका ] अट्टवसट्टदुट्टा तं गब्भं परिवहइ । तए णं सा चेल्लणा देवी नवहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सोमालं सुरूवं दारयं पयाया ॥ ४० ॥ ( ६६ ) [ वर्ग- प्रथम छाया - ततः खलु सा चेल्लना देवी तं गर्भं यदा नो शक्नोति बहुभिर्गर्भशातनंश्च यावद् गर्भविध्वंसनेश्च शातयितुं वा यावद् विध्वंसयितुं वा तदा शान्ता तान्ता परितान्ता निर्विण्णा सती कामिका अपस्ववशा आर्तवशातं दुःखार्ता तं गर्भं परिवहति । ततः खलु सा चेल्लना देवी नवसु मासेसु बहुप्रतिपूर्णेषु यावत् सुकुमारं सुरूपं दारकं प्रजाता ॥ ४० ॥ - पदार्थान्वयः - एणं - तदनन्तर, सा चेल्लणा देवी - वह महारानी चेलना, तं गब्र्भ-उस (अपने) गर्भ को, जानो संचाएइ - जब वह (गिराने में समर्थ न हुई – गिरा न सकी, बहूह गब्भसाडर्णोह – गर्भ-नाशक अनेक औषधियों द्वारा, य एवं, जाव० - यावत्, गन्भ-विद्धं सहिगर्भ के शातन विध्वंसन बादि में, ताहे संता तंता परितंता - वह ग्लानि पूर्वक खेद - खिन्न होती हुई, निव्विन्ना समाणा - अतिशय दुखित हो गई, (तो) अकामिया - अनिच्छा से, अवसवसा - विवशता के कारण अट्टवसट्टदुहट्टा–आर्तध्यान के वशीभूत होकर, तं गब्र्भ-उस गर्भं को, परिवहइ - वहन करने लगी, अर्थात् धारण किए रही, तएणं तत्पश्चात्, सा चेल्लणा देवी - वह महारानी चेलणा, नवहं मासा - नौ महीनों का लम्बा समय व्यतीत होने पर, जाव- यावत्, सोमाने सुरु(उसने एक) सुकुमार एवं सुरूप - सुंदर रूप वाले, दारयं पुत्र को, पयाया— जन्म दिया ||४०|| मूलार्थ - त - तदनन्तर महारानी चेलणा देवी जब अपने उस गर्भ को अनेक विध गर्भ-नाशक औषधियों द्वारा उदर से बाहर लाने उसे नष्ट एवं ध्वस्त करने में विफल रही तो वह ग्लानिपूर्वक खेद - खिन्न होती हुई अतिशय दुखी हो गई, तब वह अनिच्छापूर्वक विवशता के कारण आर्तध्यान के वशीभूत होकर उस गर्भ को वहन करने लगी, अर्थात् विवशता से धारण किये रही। तत्पश्चात् चेलणा देवी ने नौ मासों का लम्बा समय पूर्ण होने पर एक सुकुमार एवं सुरूप - सुन्दर बालक को जन्म दिया ॥४०॥ टीका - इस सूत्र द्वारा यह ध्वनित होता है कि गर्भस्थ जीव के दुष्ट होने के कारण महारानी चलना देवी समय से पूर्व ही उस गर्भ को नष्ट कर देना चाहती थी, अतः यह स्पष्ट हो रहा है कि
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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