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________________ वर्ग-प्रथम] (६८) [निरयावलिका गर्भ को विध्वस्त करनेवाली औषधियों द्वारा, य-और, इच्छति-इच्छा करने लगी, साडित्तए बा-गर्भ को सड़ाने के लिये, पाडित्तए वा-गर्भ-पात करने के लिये, गालित्तए वा-गर्भ को गला देने के लिये, विखंसित्तए वा-विध्वस्त कर देने के लिये, नो चेव से गम्भं-किन्तु वह सफल नहीं हो पाई उस गर्भ को, सडइ वा-सड़ा देने में, पडई वा-पतन करने में, गलइ वागला देने में, विद्धंसह वा-विध्वस्त कर देने में ॥३६॥ ___ मूलार्थ-तत्पश्चात् उस चेलना देवी को अर्ध रात्रि के समय इस प्रकार के विचार उत्पन्न हुए कि यदि जन्म लेने से पूर्व ही इस गर्भस्थ बालक ने अपने पिता के कलेजे के मांस को खाया है, इसलिये यही उचित है कि इस गर्भ को किसी भी तरह उदर से बाहर निकाल दिया जाय, गर्भ-पात किया जाय, इसे गला दिया जाय या विध्वस्त कर दिया जाय, किन्तु इस प्रकार विचार करके वह उस गर्भ को सड़ा देने वाली, गिरा देने वालो गला देनेवाली गर्भ को विध्वस्त कर देने वाली औषधियों के द्वारा सड़ाने, गिराने, गलाने और विध्वस्त करने में सफल न हो सको ॥३९॥ टीका-प्रस्तुत सूत्र में "इमेणं दारएणं गन्भगएणं चेव पिडको उदरवाल मंसाणि खाइयाणि"अर्थात् इस गर्भगत शिशु ने पिता के कलेजे का मांस खाया है"-इन शब्दों से स्पष्ट ध्वनित होता है कि महारानी चेलना देवी तो मांस खाने का निमित्त मात्र थो, मांस तो गर्भस्थ नीच जीव ने खाया है । ..."दारए कुलस्स अन्तकरे भविस्सई"-उसे निश्चय हो गया कि यह बालक कुल का घातक होगा, अतः इसे गर्भ में ही समाप्त कर देना चाहिये । महारानी चेलना देवी यह गर्भपात रूप दूसरा पाप करने को भी समुद्यत हो गई, यह भी गर्भस्थ शिशु की हिंसक वृत्ति का ही प्रभाव था। सूत्र में "शातन" शब्द का अर्थ है औषधि आदि द्वारा बाहर निकालना, इसका अर्थ छीलना भी होता है, किन्तु वह अर्थ यहां अभीष्ट नहीं है । महारानी चेलना गर्भ-पात में असफल रही, इससे सिद्ध होता है कि जीव के आयुष्य कर्म को कोई समाप्त नहीं कर सकता ॥३६॥ मूल-तए णं सा चेल्लणा देवी तं गम्भं जाहे नो संचाएइ बहूहिं गम्भसाडणेहि य जाव गन्भविद्धंसणेहि य साडित्तए वा जाव विद्धंसित्तए. वा, ताहे संता तंसा परितंता निव्वन्ना समाणा अकामिया अवसवसा
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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