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निरयावलिका]
(६७)
[वर्ग-प्रथम
तीसरे यह प्रदर्शित किया गया है कि दुष्ट जीव के गर्भ में आने पर माता-पिता को अनेक तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कुछ ही दिन बाद गर्भस्थ शिश की नीच वृत्तियों को समझ कर उस गर्भ को नष्ट करने के पापभार को उठाने के लिये भी वह प्रस्तुत हो जाती है।
यह सब कर्मों का खेल है, कर्म-विधान ही यह सब खेल रच रहा है ॥३८॥
मूल-तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अन्नया कयाइ पुव्वरतावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे जाव समुपज्जित्था, जइ ताव इमेणं दारएणं गब्भगएणं चेव पिउणो उदरवलिमंसाणि खाइयाणि तं सेयं खलु मम एयं गन्भं साडित्तए वा गालित्तए वा विद्धसित्तए वा, एवं संपेहेइ, संपेहित्ता तं गम्भं बहूहिं गब्भपाडोह य यब्भ गालणेहि य गब्भविद्धंस
हिं य इच्छइ साडित्तए वा पाडित्तए वा विद्धंसित्तए वा, नो चेव णं से गम्भे सडइ वा पडइ वा गलइ व विद्धं सइ वा ॥३६॥
___छाया-ततः खलु तस्याश्चेल्लनाया देव्या अन्यदा कदाचित् पूर्वरात्रापररात्र • कालसमये अयमेतद्र पो यावत् समुदपद्यत-यदि तावत् अनेन दारकेण गर्भगतेन चैव पितुरुदरवलिमांसानि खादितानि तत् श्रेयः खलुमम एनं गर्भ शातयितुं वा पातयितुं वा गालयितुं वा विध्वंसयितुं वा, एवं संप्रेक्षते, संप्रेक्ष्य तं गर्भ बहुभिर्गर्भशातनैश्च गर्भपातनैश्च गर्भगालनैश्च गर्भविध्वंसनैश्च इच्छति शातयितुं वा पातयितुं वा गालयितुं वा विध्वंसयितुं वा, नो चैव खलु स गर्भः शीर्यते वा पतति वा बागलंति वा विध्वंसते वा ॥३६॥
पदार्थान्वयः-तए णं-तत्पश्चात्, तीसे चेल्लणाए देवीए-उस चेल्लणा देवी का, अन्नया कयाई-कभी फिर, पुठवरत्तावरत्तकालसमयंसि-मध्य रात्रि के समय, अयमेयारूवे- इस प्रकार के विचार, जाव-यावत्, समुप्पज्जित्था-उत्पन्न हुआ, जह-यदि, ताव इमेणं दारएणं-- इस बालक ने, गभगएणं चेव-गर्भ में रहते हुए ही, पिउणो-पिता के, उयरवलिमसाणि-उदरवलि अर्थात् कलेजे का मांस खाया है, तं सेयं खलु-इसलिये निश्चय से यही उचित है कि, मए मेरे द्वारा, एवं गन्भं-इस गर्भ को, साडित्तए वा-पेट से बाहर कर दिया जाए अर्थात् नष्ट कर दिया जाए, गालित्तए व-इसे गला दिया जाए, विद्धंसित्तए वा-विध्वस्त कर दिया जाए, एवं संपेहेइ-इस प्रकार विचार करती है, संपेहित्ता-ऐसा विचार करके, तं. गम्भंउस गर्भ को, बहि-बहुत से, गब्भ साडहि-गर्भ को नष्ट करने वाली औषधियों द्वारा, गम्भ-पाडह-गर्भ-पात करने वाली, गर्भ-गालणेहि-गर्भ को गला देने वाली, गम्भविद्धंसहि--