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________________ वर्ग - प्रथम ) ( ६६ ) ****** दोहद की समाप्ति होने पर, तं गन्धं - उस गर्भ को सुहं सुहेणं परिवहद्द - सुख पूर्वक वहन करने लगी ॥ ३८ ॥ [ निश्यावलिका मूलार्थ-तत्पश्चात् वह अभय कुमार उस आर्द्र रुधिर युक्त मांस को छुरी से काट कर जहां महाराजा श्रेणिक था वहां आता है, राजा श्रेणिक को गुप्त बात समझा कर उसे शय्या पर सीधा लिटाता है, लिटाकर श्रेणिक राजा के उदर से उस रुधिर युक्त मांस को बांधकर बस्ति पुटक द्वारा लपेटता है, लपेटकर चेलना देवी को महल के झरोखे बिठाता है, बिठा कर चलना देवी को जहां से नीचे दायें-बायें और सामने दिखाई दे वहां बिठाया और श्रेणिक राजा को शय्या पर चित लिटाता है। फिर श्रेणिक राजा के उदरवलि मांस को छुरी से काट कर, ( श्वेत चांदी के ) पात्र में प्रक्षेप करता है, तब वह राजा श्रेणिक झूठी मूर्छा का दिखावा करता है और फिर कुछ समय के पश्चात् अभय कुमार से परस्पर वार्तालाप करने लगता है । तत्पश्चात् वह अभय कुमार श्रेणिक राजा के उदरवलि मांस खण्डों को ग्रहण करता है, ग्रहण करके जहां चेलना देवी थी वहां माता है आकर वह मास खण्डों से भरा पात्र चलना देवी को भेंट कर देता है । तब वह चेलना देवी राजा श्रेणिक के उदरबलि मांस खण्डों के टुकड़े करके यावत् अर्थात् उन्हें भून कर अपना दोहद पूरा करती है । तब चलना देवी सम्पूर्ण दोहद वाली सम्मानित दोहद वाली व विछिन्न दोहद वाली अर्थात् दोहद की इच्छा के नष्ट हो जाने पर उस गर्भ को सुख पूर्वक बहन करती है ।। ३८ ।। टीका - प्रस्तुत सूत्र में एक ओर तो अभय कुमार जैसे मन्त्री की बुद्धिमत्ता का परिचय दिया गया है और बताया गया है कि दूरदर्शी मन्त्री ही राष्ट्र की समस्याओं को सुलझाने में सहायक हो सकता है । दूसरा नारी हठ का चित्रण किया गया है, चेलना सब कुछ आंखों से देखकर भी अपने हठ पर अडिग रही है । वह मां थी, अतः अभय कुमार को मांस-स्पर्श एवं मांस काटने जैसे अकृत्य भी करने के लिये वाध्य होना पड़ा ।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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