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वर्ग-प्रथम]
(६२)
[निरयावलिका
आद्रं मासं रुधिरं बस्तिपटकं च गृह्णन्ति, गृहीत्वा यत्रैव अभयः कुमारग्तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य करतल तमामांसं रुधिरं बस्तिपुटकञ्च उपनयन्ति ॥३७॥
_____पदार्थान्वयः-तएणं से- तत्पश्चात् उस, अभये कुमारे-अभय कुमार ने, सेणियं रायंराजा श्रेणिक को. एवं वयासी-इस प्रकार कहा, तब्भे-आप, ओहय०-भग्न-मनोरथ होकर, यावत् मा झियायह चिन्तातुर न हों, अहं तहा जत्तिहामी - मैं कोई ऐसा यत्न करूंगा, जहा णंजिससे कि, मम-मेरी, चुल्लमाउयाए चेल्लणाए छोटी माता चेलना देवी के, तस्स दोहलस्सउस दोहद की, संपत्ती भविस्सइ - पूर्ति हो सकेगी, ति कट्ट-- इस प्रकार कह कर, सेणियं रायंराजा श्रेणिक को, ताहि इट्टाहि-उसकी मनभाती (जाव), वहि- वचनों द्वारा, समासासे इआश्वासन प्रदान किया और, समासासित्ता-आश्वासन देकर, जेणेव-जहां पर, सए गिहे. अपना महल था, तेणेव उवागच्छइ-वहीं पर लौट गया। उवागच्छित्ता- लौट कर, अन्भितरएआन्तरिक, रहस्सिए-रहस्यों को जानने वाले, ठाणिज्जे पुरिसे- सम्माननीय स्थान प्राप्त विश्वस्त व्यक्तियों को, सहावेइ- बुलवाता है, सहाबित्ता- और बुलवा कर, एवं वयासी- उन्हें इस प्रकार कहा, गच्छह णं तुम्भे देवाणुप्पिया- हे देवानुप्रिय ! आप लोग जाओ और, सूणाओकिसी कसाई के घर या दुकान से, अल्लं- आद्र अर्थात् ताजा, मंसं रुहिरं-मांस और रुधिर, वत्थिपुडगंच-इस रुधिर और मांस से भरी थैली (कुछ विद्वानों की दृष्टि में कलेजा लेकर आओ, तएणं-तव, ते ठाणिज्जा पुरिसा-वे स्थानीय विशेष विश्वास-पात्र सेवक, अभएणं कुमारेणंअभय कुमार के द्वारा, एवं बुत्ता समाणा- इस प्रकार कहे जाने पर, करतल जाव-यावत् हाथ जोड़कर, हट्ट-तुट-प्रसन्न एवं संतुष्ट होकर, परिसणेत्ता-अभय कुमार की बातों को सुनते ही, अभयस्स कुमारस्स अन्तियाओ-अभय कुमार के महल से, पडिनिक्खमंति-बाहर निकले, पडिनिक्खमित्ता-बाहर निकल कर, जेणेव सूणा- जहां कसाई का घर था, तेणेव उवागच्छंतिवहीं पर आ पहुंचे, उवागच्छित्ता-तथा वहां आकर उन्होंने, अल्लं मांसं रहिरं वस्थिपुडगंचताजे अतएव गीले-गीले मांस, रुधिर और शोणित से भरी थैली ले ली, गिण्हित्ता-और उसे लेकर, जेणेव अभये कुमारे-जहां पर अभय कुमार बैठे थे, तेणेव उवागच्छन्ति-वहां पर वापिस लौट भाये, उवागच्छित्ता- और लौट कर, करयल-हाथ जोड़ कर, तं अल्लं मंसं रुहिरं वस्थिपुडगं च-उस ताजे मांस रुधिर से भरी थैली, उवणेति-उसे दे देते हैं।
मूलार्थ -तत्पश्चात् अभय कुमार ने राजा श्रेणिक से इस प्रकार कहा-आप भग्न-मनोरथ होकर इस प्रकार चिन्तातुर न हों, मैं ऐसा कोई यत्न करूंगा जिससे मेरी । छोटी माता चेलना देवी के उस दोहद की पूर्ति हो सके । इस प्रकार कहकर राजा को प्रिय लगने वाले वचनों द्वारा उसने आश्वस्त कर दिया।