________________
निरयावलिका ]
( ६३ )
राजा श्रेणिक को आश्वस्त करने ने पश्चात्, अभय कुमार अपने महल में लौट आए और लौटते ही आन्तरिक गुप्त रहस्यों के जानकार अपने सेवकों को बुलवाया और उनसे इस प्रकार कहा -- देवानुप्रियों ! तुम लोग किसी कसाई के घर पर जाओ और वहां से गीले (ताजे) मांस और रुधिर से भरी थैली लेकर आओ ।
| वर्ग
- प्रथम
वे सेवक अभय कुमार की बातें सुनकर प्रसन्न और परितुष्ट होकर अभय कुमार के पास से बाहर निकले और निकल कर किसी कसाई के घर पर पहुंचे और वहां से मांस एवं रुधिर से भरी थैली लेकर जहां अभय कुमार थे वहां पहुंचे और मांस एवं रुधिर भरी थैली हाथ जोड़कर उनको सौंप दी ।
टीका - उक्त वर्णन का यह आशय कदापि नहीं है कि उस समय राजा लोग मांसाहार करते थे । शास्त्रकार तो यह दिखलाना चाहते हैं कि "बुरे जीव के गर्भ में प्राने पर " सात्त्विक प्रकृति की महिलाओं के विचार भी दूषित हो जाते हैं, अतः चेलना देवी को इस प्रकार का दुष्ट एवं घृणित दोहद उत्पन्न हुआ ।
- यहां यह तथ्य भी स्मरणीय है कि स्त्रियों के दोहद की पूर्ति उस समय के समाज में एक उचित एवं महत्वपूर्ण प्रथा मानी जाती थी, अतः अभय कुमार और राजा श्रेणिक को कलेजे का मांस देने का नाटक करना पड़ा । दोहद-पूर्ति कोई धार्मिक कृत्य नहीं, केवल सामाजिक रूढ़ि मात्र है । इसीलिये महारानी चेलणा आगे चलकर श्रात्म-ग्लानि से प्रायश्चित्त कर इस कार्य का प्राय.श्चित करती है, गर्भ नष्ट करने के उपाय करती है और उस बालक को अनिष्टकारी समझ कर दासी द्वारा उसे कूड़े के ढेर पर फिंकवा देती है ।
महारानी चलना के दोहद में "पति के कलेजे का मांस खाने की इच्छा" बतलाई गई है, सामान्य से सामान्य नारी भी ऐसी कल्पना नहीं कर सकती । गर्भस्थ जीव की दुष्टता का केवल प्रभाव दिखाने के लिये ऐसा चित्रण किया गया है ।
मूल तणं से अभए कुमारे तं अल्लं मंसं रुहिरं कप्पणीकप्पियं करेइ, करिता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छ्इ, उवागच्छित्ता, सेणियं रायं रहसिंगयं सयणिज्जंसि उत्ताणयं निवज्जावेद, निवज्जावित्ता सेणियस्स उदरवलीस तं अल्लं मंसं दहिरं विरवेद, विरवित्ता, वरिथ