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वर्ग-प्रथम
(६०)
[निरयावलिका
... दूसरा संकेत इस प्रकार भी दिया गया है कि जहां माता-पिता के आचरण, वार्तालाप आदि का गर्भस्थ बालक पर प्रभाव पड़ता है वहां गर्भस्थ जीव का माता-पिता पर भी प्रभाव पड़ता है। महारानी चेलना पर गर्भस्थ दुष्ट जीव का ही यह प्रभाव पड़ा कि वह पति के कलेजे के भांस से दोहद-पूर्ति जैसा निकृष्ट विचार करने लगी।
"उयरावलिमसेहि" शब्द का "जैनागम शब्द-संग्रह अर्धमागधी गुजराती कोश" में कलेजे का मांस अर्थ प्राप्त होता है और 'सोल्लेहि' शब्द का अर्थ उसी कोष में "सलाइयों पर पकाया हुआ मांस" किया है । अतः हमने कोषानुसारी अर्थ ही ग्रहण किया है ॥ ३५॥
- मूल-तएणं सा चेल्लणा देवीतंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सक्का जाव झियायइ । तएणं अहं पुत्ता ! तस्स दोहलस्स संपत्ति-निमित्तं बहुहिं आएहि य जाव ठिई वा अविंदमाणे ओहय० जाव० झियामि ॥३६॥
छाया-ततः खलु सा चेलना देवी तस्मिन् दोहदे अविनीयमाणे शुष्का यावत् ध्यायति । ततः खल्वहं पुत्र । तस्य दोहदस्य संपत्ति-निमित्तं बहुभिरायः-उपायैः यावत् स्थिति वा अविन्दन् अपहत० यावद्० ध्यायामि ॥३६॥
१ पदार्थान्बयः-तए थे इसलिए, सा चेलणा देवी-वह महारानी चेलना, तंसि दोहलंसिउस दोहद के, अविणिज्जमाणंसि-पूर्ण न होने के कारण, सुक्का-कृशकाय होकर, जाव झियायआर्तध्यान कर रही है । तएणं-इसलिये, अहं पुत्ता-हे पुत्र मैं, तस्स दोहलस्स-उसके उस दोहद को, संपत्ति निमित्तं-पूर्णता के लिये, बहुहिं आएहि-बहुत उपायों से भी, जाव० ठिइंवा
विदमाणे-स्थिति को न समझ पाने के कारण, ओहय जाव० शियामि-मैं भग्न-मनोरथ होकर चिन्तातुर हो सोच रहा हूं ॥३६॥ ।
- मूलार्थ-हे पुत्र ! महारानी चेलना देवी के उस दोहद के पूर्ण न होने के कारण वह कृशकाय होकर चिन्तातुर रहती है। उस दोहद की पूर्ति के बहुत से उपाय करके भी कुछ समझ न पाने के कारण हताश होकर मैं भग्नमनोरथ होकर चिन्ता में डूबा रहता हूं ॥३६॥
टोका-इस सूत्र द्वारा यह स्पष्ट हो रहा है कि गृहस्थी को अपनी चिन्ता के साथ अपने पारिवारिक-जनों के लिये भी चिन्तातुर रहना पड़ता है। दोहर--पूर्ति जैसे सामान्य से कार्य के