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________________ (५६) निरयावलिका (५६) [वर्ग-प्रथम णं ताओ अम्मयाओ जाओ उयरवलिमसेहिं सोल्लेहि य जाव दोहलं विणेति ॥३५॥ छाया-ततः खलु स श्रेणिको राजा अभयकुमारमेवमवादीत्-नास्ति खलु पुत्र सः कोऽप्यर्थः यस्य खलु त्वमनहः श्रवणताय । एवं खलु पुत्र ! तव क्षुल्लकमातुश्चेल्लनाया देव्यास्तस्योदारस्य यावत् महास्वप्नस्य त्रिषु मासेषु बहुप्रतिपूर्णेषु अयमेवरूप: दोहलः प्रादुर्भूतः-"धन्यास्ते अम्बाः याः तव उदरवलिमांसः शूलकश्च यावत् दोहदं विनयन्ति।" ततः खलु सा चेल्लना देवी तस्मिन् दोहदेऽविनीयमाने शुष्का यावत् ध्यायति। ततः खल्वहं पुत्र! तस्य दोहदस्य सम्पत्ति-निमितं बहुभिरायरुपायैश्च यावत् स्थिति वा अविन्दन् अपहत० ध्यायामि ॥ ३५॥ ___ पदार्थान्वयः-तए णं-तदनन्तर, से सेणिये राजा-वह राजा श्रेणिक, अभयं कुमारंअभय कुमार को, एवं वयासी-इस प्रकार बोला, णस्थि णं पुत्ता! हे पुत्र ऐसा कुछ भी नहीं है, जस्स गं तुमं-तुम जिसके, अणरिहे सवणाए-जिसे तुम सुनने योग्य के नहीं हो, एवं खलु पुत्ता!-हे पुत्र वस्तुतः बात यह है कि, तव-तुम्हारी, चुल्लमाउयाए चेल्लणाए देवीए-छोटी माता चेलना देवी के, तस्स ओरालस्स-उस प्रमुख, जाव-यावत्, महासुमिणस्स-महास्वप्न के, तिष्णं मासाणं-तीन महीने, बहुपडिपुन्ना गं-परिपूर्ण होने पर, अयमेवारवे-इस प्रकार का, बोहले पाउन्भूए-दोहद उत्पन्न हुआ, धन्नाओणं ताओ अम्मयामो-धन्य हैं वे मातायें जो कि तुम्हारे (राजा श्रेणिक के), उयरवलिमसेहि-कलेजे के मांस से, सोल्लेहि-तल-भून कर, दोहलं विणेति-अपने दोहद को पूर्ण करती हैं ॥३५।। मूलार्थ-तब उस राजा श्रेणिक ने अभय कुमार से इस प्रकार कहा-"पुत्र ! ऐसी कोई भी बात नहीं है जो तुम्हारे सुनने के योग्य न हो, किन्तु बात यह है कि तुम्हारी छोटी माता चेलना देवी को एक महान् उदार महास्वप्न को देखे हुए तीन मास बीतने पर यह दोहद उत्पन्न हुआ कि "वे मातायें धन्य हैं जो मेरे (श्रेणिक) के हृदय के मांस को सलाइयों पर सेक एवं तल-भून कर उस मांस से अपने दोहद को पूर्ण करती हैं ॥ ३५॥ टोका-प्रस्तुत प्रकरण द्वारा पहला ज्ञातव्य यह संकेत मिलता है कि राजा और मन्त्री पाहे पिता-पुत्र ही क्यों न हों उन्हें कुछ भी छिपाए बिना सब बातें एक दूसरे को स्पष्ट रूप से बतला • देनी चाहिये, तभी कोई कार्य सम्पन्न हो सकता है, अन्यथा नहीं।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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