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निरयावलिका]
(५७)
[वर्ग-प्रथम
- उत्थानिका-तदनन्तर चेलना को दोहद-पूर्ति के विषय में क्या हुआ ? अब सूत्रकार इस विषय में कहते हैं. मूल-इमं च णं अभय कुमारे व्हाए जाव सरीरे, सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खभित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाण-साला जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं ओहय० जाव झियायमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी-"अन्नया गं ताओ ! तुम्भे ममं पासित्ता हट्ठ जाव हियया भवह, किन्नं ताओ ! अज्ज तुम्भे ओहय० जाव झियायह ? तं जइणं अहं ताओ, ! एयस्स अट्ठस्स अरिहे सवणयाए तो णं तुब्भे मम एयमढें जहाभूयमवितहं असंदिद्धं परिकहेह, जाणं अहं तस्स अट्ठस्स अंतगमणं करोमि ॥३४॥
छाया-इतश्च खलु अभयः कुमारः स्नातः यावत् शरीरः, स्वकात् गृहात् प्रतिनिष्कामति, प्रतिनिष्क्रम्य यौव बाह्या उपस्थानशाला यत्रैव श्रोणिको राजा तत्रेवोपागच्छति, उपागत्य च घोणिक राजानं अवहत० यावत् ध्यायन्तं पश्यति, दृष्ट्वा एवमवादीत्-"अन्यदा खलु तात ! यूयं मां दृष्ट्वा हृष्टः यावत् हृदयः भवथ, किं खलु तात ! अद्य यूयं अवहत. यावत् ध्यायथ, तद्यदि खल्वहं तात ! एतस्यार्थस्याहः श्रवणताय तदा खलु यूयं मम एतमयं यथाभूतम् अक्तिथं असंदिग्धं परिकथयत, यस्मात् खल्वहं तस्यार्थस्यान्तगमनं करोमि ॥३४॥ ..
पदार्थान्वयः-इमं च णं- उस समय, अभय कुमारे- अभय कुमार, व्हाए-स्नान करके, जाव-यावत्, सरीरे--शरीर को अलंकृत करके, सयाओ गिण्हाओ-अपने निजी राज-महल में से, पडिनिक्खमइ-बाहर निकला, पडिनिक्खमित्ता:-और बाहर निकल कर, जेणेव - जहां पर, बाहिरिया-बाहर की ओर, उवट्ठाणसाला-राज-सभा-मण्डप • था, जेणेव और जहां पर, सेणिए राया-राजा श्रेणिक बैठा था, तेणेव-वहां पर, उवागच्छइ-आता है, उवागच्छित्ता-और वहां आकर, सेणियं रायं-राजा श्रेणिक को, ओहय०-उपहत मन वाले अर्थात् मरे हुए मन से, जाव-यावत्, झियायमाणं-मार्तध्यान करते हुए, पासइ-देखता है, पासित्ता एवं वयासी-और उन्हें इस दशा में देख कर बोला, ताओ !-तात, अन्नया णं-अन्यदा हर समय अर्थात् पहले तो, तुम्भे-आप, ममं पासित्ता-मुझे देखते ही, हठ-हर्ष-युक्त, जाव-यावत्, हियय-हृदय से, भवह-होते रहे हैं, कि णं राओ अज्ज-हे तात फिर आज किस कारण से, तुम्भे-आप, ओहय०-अपने मन को मार कर, जाव-यावत्, झियायह-आर्तध्यान कर रहे