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वर्ग-प्रथम .
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[ निरयावलिका
प्रकार कहकर राजा श्रेणिक महारानी चेलना देवी को इष्ट की पूर्ति करने वाले अत्यन्त सुन्दर प्रियकारी, मन को भानेवाले, उसे अनुकूल प्रतीत होन वाले उदार भावनाओं से युक्त अर्थात् गर्भकाल की इच्छाओं को पूर्ण करने वाले, कल्याणकारी शुभकारी, धन्य कहलाने के योग्य मंगलकारी, अल्प शब्दों द्वारा अत्यन्त मधुर एवं शोभायमान वचनों द्वारा आश्वासन देते हैं और आश्वासन देकर चेलना देवी के पास से वापिस लौट जाते हैं और वे लौट कर जहां अपनी राज-सभा थी और उस सभा में जहां उनका अपना निजी सिंहासन था वहां पर आकर अपने श्रेष्ठ अत्युत्तम राज-सिंहासन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठ गए । बैठकर उस दोहद की पूर्ति के लिये अनेक साधन, एवं उपाय उत्पत्तिको, वनयिकी; कामिकी और परिणामिकी बुद्धि द्वारा सोचते हुए उस दोहद की पूर्ति का कोई भी साधन, उपाय एवं व्यवस्था न सूझने पर और अपने मानसिक संकल्प की पूर्ति न होने पर राजा श्रेणिक भी आर्तध्यान करने लगे-अर्थात् चिन्ता-निमग्न हो गए ॥३३॥
टोका-प्रस्तुत सूत्र में राजा श्रेणिक द्वारा महारानी चेलना को उसकी दोहद-पूर्ति के आश्वासन देने का वर्णन किया गया है । आश्वासन के लिये प्रयुक्त शब्दों द्वारा यह ध्वनित होता है कि किसी को यदि आश्वासन दिया जाये तो वह प्रियकारी शुभंकारी एवं कल्याणकारी शब्दों द्वारा ही देना चाहिये।
__साथ ही “जइस्सामि" इस क्रिया द्वारा यह शिक्षा दी गई है कि जब तक किसी बात को पूर्ण करने की शक्ति पर पूर्ण विश्वास न हो जाय तब तक निश्चयकारी वचन नहीं बोलने चाहिये।
प्रस्तुत सूत्र में चार प्रकार की बुद्धियों का वर्णन किया गया है। चारों प्रकार बुद्धियों का विवरण इस प्रकार है१. औत्पत्तिकी बुद्धि-जिस बुद्धि के द्वारा शास्त्रों के अभ्यास के बिना ही अनदेखे अनसुने और पहले
अनुभव में न आए हुए विषयों का भी यथार्थ ज्ञान हो जाय उसे औत्पत्तिकी बुद्धि कहा
जाता है। २. वनयिकी बुद्धि-विनय-भाव से उत्पन्न होने वाली बुद्धि वैनयिको बुद्धि कही जाती है । ३. कार्मिकी (कर्मजा) बुद्धि-उपयोग-पूर्वक चिन्तन-मनन करते हुए कार्य करने से उत्पन्न होनेवाली
बुद्धि कार्मिकी बुद्धि कहलाती है। ४. पारिणामिको बुद्धि-अनुमान आदि द्वारा कार्य को सिद्ध करनेवाली एवं आयु की परिपक्वता के
कारण परिपुष्ट होने के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होने वाली बुद्धि पारिणामिकी बुद्धि कहलाती है ।।३३॥