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वग-प्रथम
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[निरयावलिका
का मांस खाने का दोहद उत्पन्न हुआ, इस दोहद की पूर्ति न होने से मेरी यह दशा हो रही है कि मेरा शरीर सूखता जा रहा है और अरुचि के कारण मुझे भोजन भी अच्छा नहीं लग रहा, अतः मैं हर समय चिन्तित रहती हूं। इसके द्वारा महारानी ने अपनी असमंजस में पड़ी स्थिति को स्पष्ट कर दिया है।
इस कथन से यह भी भली-भांति सिद्ध हो जाता है कि रानी की इच्छा मांस-भक्षण की नहीं थी, किन्तु यह इच्छा केवल गर्भस्थ शिशु के प्रभाव के कारण उत्पन्न हुई थी।
उक्त घटना से यह भी ध्वनित होता है कि पति-पत्नी को चाहे जैसी भी घटना अथवा परिस्थिति हो परस्पर सत्य रूप से वह स्थिति स्पष्ट कह देनी चाहिये । स्पष्टता से उसका समाधान भी ढूंढा जा सकता है और प्रायः ढूंढ ही लिया जाता है ॥३२॥
उत्थानिका- अब सूत्रकार उसी घटना के विषय में अन्य विवरण प्रस्तुत करते हैं
मूल-तए णं से सेणिए राया चेल्लणं देवि एवं वयासी-माणं तुम देवाणुप्पिए ! ओहय० जाव झियायह, अहं णं तहा जइस्सामि जहा णं तव दोहलस्स संपत्ती भविस्सइत्ति कटु चेल्लणं देवि ताहिं इाहिं कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहि, मंगल्लाहि, मियमधुरसस्सिरीयाहिं वह, समासासेइ, समासासित्ता, चेल्लणाए देवीए अंतियाओ पडिमिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता तस्स दोहलस्स संपत्तिनिमित्तं बहहिं आएहिं उवाएहि य उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मियाहि य पारिणामियाहि य परिणामेमाणे-२ तस्स दोहलस्स आयं वा उदायं वा ठिई व अविदमाणे ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ ॥३३॥
__ छाया-ततः खलु सः श्रोणिको राजा चेल्लनां देवीमेवमवादीत्-मा खलु त्वं देवाणुप्रिये अकहत. यावत् ध्याय, अहं खलु तथा यतिष्ये, यथा खलु तव दोहदस्य सम्पत्तिर्भविष्यतीति उक्त्वा चेल्लणां देवीं ताभिरिष्टाभिः कान्ताभिः प्रियाभिमनोज्ञाभिर्मनो-रमाभिरुदाराभिः कल्याणाभिः . शिवाभिर्धन्याभिर्माङ्गल्याििमतमधुरसश्रीकाभिल्गुभिः समाश्वासयति, समाश्वास्य चेल्लनाया देव्या अन्तिकात् प्रतिनिष्कामति, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव बाह्या उपस्थानशाला यत्रैव सिंहासनं तत्रवोपागच्छति,