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________________ निरयावलिका ] - - से इस प्रकार बोली, णत्थि णं सामी - हे स्वामिन् ! ऐसा कुछ भी नहीं, से - ऐसी, केई अट्ठ े - कोई भी बात जस्स णं- जो कि, तुम्भे-प्रापके, अणरिहा सवणयाए - सुनने के योग्य न हो, मोचेब णं- और न ही इमस्स अट्ठस्स- इस बात को, सवणयाए - सुनने के ( अयोग्य हैं, एवं खलु सामी - इस प्रकार निश्चय ही हे स्वामी, ममं मुझे, तस्स ओरालस्स - उस महान्, जाव महासुमिणस्स – महास्वप्न अर्थात् सिंह-दर्शन वाले सुन्दर स्वप्न को देखने के अनन्तर, तिह मासा - तीन महीनों के, बहुपडिपुण्णाणं- परिपूर्ण होने पर, अयमेयारूवे – इस प्रकार का, दोहले पाउन्भू ए - दोहद उत्पन्न हुआ, धन्नाओ णं- धन्य हैं वे, अम्मयाओ - मातायें, जाओ णंजो कि अपने, णिस्स – निजी - अपने रन्नो- राजा अर्थात् पति के, उदरवलि मंसेहि — कलेजे के मांस को, सोल्सएहि - शूलों पर सेके हुए मांस को (एक दूसरे को देकर खाती हुई), जाव - मांस और मदिरा द्वारा, दोहल विणेंति - अपने दोहद को पूरा करती हैं, तएणं- तत्पश्चात्, सामीहे स्वामिन, अहंमैं, तंसि दोहलंसि-उस दोहद के, अविणिज्जमानंसि - पूर्ण न होने पर, सुक्का - सूखती जा रही हूं, भुक्खा - भूखी रह रही हूं, जाव झियायामि - यावत् आर्तध्यान कर रही हूं ||३२|| 1 (५३) [ वर्ग - प्रथम मूलार्थ - तदनन्तर वह चेलना देवी राजा श्रेणिक के द्वारा दो-तीन बार बुलाई जाने पर अर्थात् पूछने पर राजा श्रेणिक से इस प्रकार कहने लगी- " हे स्वामिन् ! ऐसी कोई भी बात नहीं है जिसे सुनने के योग्य आप न हों, इस बात को भी आप सुनने के आयोग्य नहीं है, ( किन्तु यह बात आपके सुनने के योग्य नहीं है), क्योंकि स्वामिन् सिंह दर्शन वाले महान स्वप्न को देखने के अनन्तर गर्भ के तीन मास पूर्ण होने पर मेरे मन में एक विचित्र दोहद उत्पन्न हुआ है कि वे मातायें धन्य हैं जो अपन राजा अर्थात् पति के कलेजे का मांस सलाइयों पर भून कर ( एक दूसरे को बांट कर मदिरा पीते हुए खाती हैं) । तदनन्तर हे स्वामिन् ! मैं उस दोहद के पूर्ण न होने पर सूखती जा रही हूं, भूखी रह रही हूं और आर्तध्यान कर रही हूं, अर्थात् चिन्तातुर होकर सोच में डूबी रहती हूं ॥ ३२ ॥ ॥ टीका - इस सूत्र में उक्त विषय का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है कि जब राजा ने दो-तीन बार रानी चेलना से पूछा तो उसने कहा - "हे स्वामिन्! ऐसी कोई भी बात नहीं है। जो आपके सुनने योग्य न हो, किन्तु यह बात आपके सुनने योग्य नहीं है, क्योंकि यह घटना अत्यन्त कष्ट देने वाली है । जब राजा ने पुनः पुनः आग्रह किया तो चेलना देवी कहने लगी कि "हे स्वामिन् ! मैंने सिंह दर्शन वाला स्वप्न देखा था उसके बाद गर्भ के तीन मास बीतने पर मुझे आपके कलेजे
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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