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निश्वावलिका ]
[ वर्ग - प्रथम
पदार्थान्वयः - तएणं – तत्पश्चात्, तीसे चेल्लणाए देवीए - उस चेलना देवी की, अंगपडियारियाओ - महारानी की सेविकाओं ने, चेल्लणं देवीं - महारानी चेलना देवी को, सुबकं - दुर्बल - सूख सी गई, भुवखं - आहार का त्याग करने के कारण भूखी सी, क्षीण जाव - क्षीणकाय मानसिक एवं शारीरिक रूप से बीमार निस्तेज जैसी दशा को ( प्राप्त), झियायमाणी - आर्तध्यान करती हुई को, पासंति — देखा, पासित्ता - देखकर वे, जेणेव सेणिए राया- जहां राजा श्रेणिक थे, तेणेव - वहीं पर, उपागच्छन्ती - आ गईं, उवागच्छित्ता - और वहां आकर, करतल-परिग्गहियं - दोनों हाथ जोड़कर, सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु - आवर्त - पूर्वक मस्तक पर जुड़े हुए हाथ रख कर, सेणिए रायं वयासी - राजा श्रेणिक से इस प्रकार कहने लगीं, एवं खलु स्वामी - स्वामिन् ! बात यह है कि, न जाणामो- हम नहीं जान पा रही हैं कि, चेल्लणा देवीमहारानी चेलना देवी, केणइ कारणेणं - किस कारण से, सुक्का - भुक्खा भूखी रहकर सूखती जा रही हैं, (और) जाव - यावत् झियायई - आर्त-ध्यान में डूबी रहती हैं ॥ २८ ॥ मूलार्थ - -तत्र चलना देवी की अंग - परिचारिकाओं अर्थात् उस की वैयक्तिक सेवा में नियुक्त दासियों ने चेलना देवी को सूखी - सी और भूख से ग्रस्त-सी तथा चिन्तालीन स्थिति में देखा तो वे देखते ही वे राजा श्रेणिक के पास पहुंचीं। उन्होंने दोनों हाथ जोड़ कर आवर्त - पूर्वक मस्तक पर दोनों जुड़े हुए हाथ रखकर राजा श्रेणिक से इस प्रकार निवेदन किया कि - "स्वामिन् ! न मालूम किस कारण से महारानी चेलना देवी क्षीणकाय एवं भूखी रहकर आर्तध्यान में लीन रहती हैं - चिन्ताग्रस्त रहती हैं ।
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टीका - इस सूत्र द्वारा ज्ञात होता है कि राज-महलों में उस समय महारानियों की सेवा ' के लिये अनेक प्रकार की दासियां रहती थीं जिनमें अंग-परिचारिकायें भी होती थीं, जिन पर महारानी के स्वास्थ्य की देख-रेख और उसकी शारीरिक परिचर्या का दायित्व होता था ।
कोई ऐसी वैसी स्थिति उत्पन्न होने पर वे सारी स्थिति राजा को जाकर बतलाती थीं । * यह तत्कालीन राज-व्यवस्था थी ||२८||
मूल - तए णं से सेणि राया तासि अंग परियारियाणं अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म तहेव संभंते सम्गणे जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेल्लणं देवि सुक्कं भुक्खं जाव झियायमाणि पासिता एवं वयासी - किन्नं तुमं देवाणुप्पिये ! सुक्का भुक्खा जाव झियायसि ? ॥ २६ ॥