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वर्ग-प्रथम ]
(४८)
। निरयावलिका
टीका-इस सूत्र में दोहद को पूर्ति न होने के कारण महारानी चेलना की क्या दशा हुई इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है।
सुक्का-इस पद का भाव यह है कि भोजन के अभाव में रुधिर-क्षीणता हो जानी स्वाभाविक है और रुधिर के अभाव में उसका शरीर सूव गया ।
भक्खा-इस पद का भाव यह है कि - गर्भावस्था में प्रायः भोजन में अरुचि हो जाती है, साथ ही दोहद - पूर्ति के अभाव के कारण भी वह भोजन नहीं करती थी, अतः वह भूखी-सी ही रहती थी।
निम्मंसा-शब्द सूचित कर रहा है कि रुधिर-क्षीणता और भोजन के अभाव में उसके शरीर का मांस उतर गया, अतः वह दुर्बल एवं क्षीणकाय हो गई।
चिन्ता अनेक दुःखों की माता है । महारानी चेलना चिन्तातुर रहने के कारण शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार से रुग्ण रहने लगी, अतः उसके चेहरे का तेज उड़ सा गया। दीन-हीन सी हो जाने के कारण वह सोचती रहती थी कि सब लोग क्या सोचेंगे, अतः वह मुंह नीचा करके गौर आंखें झुकाए बैठी रहती थी, अब फूलों की मालायें, सुन्दर वस्त्र आभूषण और इत्र-फुलेल आदि के प्रयोग में भी उसकी रुचि नहीं रही, अतः वह मुझाई हुई कमल-माला के समान पड़ी-पड़ी चिन्ता-निमग्न रहने लगी।
इस प्रकार प्रस्तुत सूत्र में चिन्ता के दुष्परिणामों का बहुत सुन्दर विवेचन किया गया है ॥२७॥ उत्थानिका-उसकी सेविकाओं द्वारा राजा श्रोणिक को सूचना देना
मूल--तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अंग-पडियारियाओ चेल्लणं देवि सुक्कं भुक्खं जाव झियायमाणीं पासंति, पासित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता करतल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु सेणियं रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! चेल्लणा देवी न जाणामो केणइ कारणेणं सुक्का भुक्खा, जाव झियायइ ॥२८॥
छाया-ततः खलु तस्याश्चेलनायाः देव्याः अंगपरिचारिकाः चेलनां देवीं शुष्का बुभुक्षितां यावद् ध्यायन्ती पश्यन्ति । दृष्ट्वा यत्रैव श्रेणिको राजा तत्रैव उपागच्छन्ति, उपागत्य करतल-परिगृहीतं शिरसावतं मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा श्रोणिकं राजानं एवमवादिषुः-एवं खलु स्वामिन् ! चेल्लना देवी न जानामः केनापि कारणेन शुष्का बुभुक्षिता यावत् ध्यायति ॥२८॥