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वर्ग-प्रथम ]
(४६)
[ निरयावलिका
कयाइं-कभी एक बार, तिण्हं मासाणं-तीन महीने, बहुपडिपुण्णाणं-प्रतिपूर्ण होने पर, अयमेवारूवे-इस प्रकार का, दोहले-दोहद, पाउन्भूए-उत्पन्न हुआ कि, धन्नाओ णं-निश्चित ही धन्य हैं, ताओ अम्मयाओ-वे मातायें, जाव-यावत्, जम्म-जीविय-फले-जन्म और जीवन सफल हैं, जाओ णं-जो कि, णियस्स रन्नो- अपने राजा अर्थात् पति के, उदरवलीमसेहिउदरवली अर्थात् कलेजे के मांस को, सोल्लेहि-शूलों अर्थात् सलाइयों पर पका कर, और तलिएहि-तले हुए मांस का, य भज्जिएहि-और भुने हुए मांस का, सुरं च–सुरा अर्थात् शराब का, जाव-यावत्, पसन्नं च--प्रसन्न करने वाली विशेष प्रकार की मदिरा का, आसाएमाणीओआस्वादन करती हुई, यावत्-परस्पर, परिभाएमाणीओ-प्रादान-प्रदान करती हुई, दोहलं-- दोहद को, पविणेति–पूरा करती हैं ।
मूलार्थ-तत्पश्चात् उस चेलना देवी के कभी एक बार (गर्भ) के तीन महीने पूरे होने पर (उसके हृदय में) इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ कि निश्चित ही धन्य हैं वे मातायें उन्हीं का जन्म और जीवन सफल है जो कि अपने राजा अर्थात् पति के कलेजे के मांस को शूलों अर्थात् सलाइयों पर पका कर और तले हुए या भुने हुए मांस का सुरा अर्थात् शराब का एवं प्रसन्न कर देनेवाली विशेष प्रकार की मदिरा परस्पर बांट कर आस्वादन करती हुई अपने दोहद को पूरा करती हैं।
टोका-इस सूत्र में चेलना के दोहद का वर्णन किया गया है । गर्भ - धारण के तीन महीने पूरे होने पर उसके हृदय में अपने पति के कलेजे का मांस खाने का दोहद (गर्भिणी नारी के मन में उत्पन्न होनेवाली इच्छा) उत्पन्न हुआ । इस सूत्र के विशिष्ट पदों का जो अर्थ वृत्तिकार ने स्पष्ट किया है. वह जानने योग्य है । जैसे कि
उदरवली-मंसेहि-इन शब्दों का अर्थ है कलेजे का मांस ।
सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि-इन शब्दों द्वारा मांस के पकाने, तलने और भूनने का संकेत किया गया है।
पसन्नं-इस पद का अर्थ मन को प्रसन्न करनेवाली विशेष प्रकार की मदिरा है।
उत्थानिका-दोहद की पूर्ति के अभाव में चेलना को क्या दशा हुई ? अब इस विषय पर प्रकाश डालते हुए सूत्रकार कहते हैं :
मूल-तए णं सा चेल्लणा देवी तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलुग्ग-सरोरा नित्तेया दोण-विमण