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निरयाबलिका
(४७)
[वर्ग-प्रथम
वयणा पंडइय-मही ओमंथिय-नयण-वयण-कमला जहोचियं पप्फ-वत्थ-गंधमल्ला-लंकारं अपरि जमाणी करतलमलियन्व-कमल-माला ओहयमणसंकप्पा जाव झियाइ ॥२७॥
छाया-ततः खलु सा चेलना देवी तस्मिन् दोहदे अविनीयमाने शुष्का बुभुक्षिता निर्मासा अवरुग्णा अवरुग्ण-शरीरा निस्तेजाः दीन-विमनोवदना पाण्डुकितमुखी अवमन्थित-नयन-वदन-कमला यथोचितं पुष्प-वस्त्र-गन्ध-माल्यालङ्कारं अपरिभुञ्जन्ती करतल-मलितेव कमल-माला उपहतमनःसंकल्पा यावत् ध्यायति ॥२७॥
पदार्थान्वयः-तए णं-तत्पश्चात्, सा-वह, चेल्लणा देवी-चेलना देवी, तंसि दोहलंसिउस दोहद के, अविणिज्ज-माणंसि-पूर्ण न होने पर, सुक्का-सूख गई, भुक्खा-आहारादि न करने के कारण भूखी रहने लगी, निम्मंसा-शरीर पर मांस न रहने के कारण, (और) ओलुग्गाइच्छा-पूर्ति के अभाव में रुग्ण सी, ओलुग्ग-सरीरा-क्षीणकाय हो जाने के कारण, णित्तेया-निस्तेज, दोण-विमण-वयणा-दीन उत्साह-रहित एवं निस्तेज मुखवाली, पंडुइय मुही-फीके से मुख वाली चेलना, ओम थिय-नयण-वयण-कमला-नेत्र और मुख-कमल को नीचा किये, जहोचियं यथोचित, पुष्फ-वत्थ गंधमल्लालङ्कार-पुष्प वस्त्र सुगन्धित पदार्थों और प्राभूषणों का, अपरि जमाणीउपभोग न करती हुई, करतल-मलियव्व-हथेलियों से मसली हुई, कमल-माला-कमलों की माला के समान, ओहयमण-संकप्पा--मन का संकल्प-अभिलाषा पूर्ण न होने के कारण, जाव झियाइआर्त-ध्यान करने लगी॥२७॥
मूलार्थ-तत्पश्चात् महारानी चेलना दोहद की पूर्ति न होने के कारण सूखने लगी, रुचि का अभाव होने से भूखी रहने लगी, अतः क्षीण काय हो गई, मानसिक व्यथा के कारण रुग्ण रहने लगी और रुग्णता के कारण निस्तेज हो गई। दोन-हीन मानसिक उत्साह न रहने के कारण उसका सुख-कमल मुरझा सा गया-मुख फीका पड़ गया। अब वह आंखें और मुख नीचा किए हुए यथायोग्य पुष्प, वस्त्र सुगन्धित पदार्थों तथा आभूषणों का सेवन नहीं करती थी। वह हाथों से मसली हुई कमलों की माला के समान मुरझा सो गई और मानसिक संकल्प (दोहद-पूर्ति की अभिलाषा) पूर्ण न होने के कारण कर्तव्य-अकर्तव्य के विवेक से रहित होकर आत-ध्यान करतो रहती थीअर्थात् दुःख में पड़ी सोचती रहती थी।