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________________ निरयावलिका ] (४५) [ वगै-प्रथम ] * स्वप्न देखते ही वह जागी और प्रसन्न होती हुई राजा श्रेणिक के शयन कक्ष में पहुंची और स्वप्न का वृत्तान्त उसे सुनाया। राजा ने कुछ स्वप्न-फल तो स्वयं ही बतला दिया, फिर प्रातःकाल होते ही राजा श्रेणिक ने स्वप्न-पाठकों अर्थात् स्वप्न-फल के विशेषज्ञों को राज-सभा में बुलवाया और उन्होंने स्वप्न-फल के रूप में पुत्र-प्राप्ति बतलाई । स्वप्न-पाठकों के फलादेश पर विश्वास करके महारानी चेलना अपने निवास स्थान पर चलो गई। स्वप्न-दर्शन विषयक सम्पूर्ण वर्णन भगवती सूत्र के ११वें शतक में और ज्ञाता-धर्म कथा ङ्गसूत्र के प्रथम अध्ययन में महारानी प्रभावती और महारानी धारिणी के प्रसंगों में विस्तार से प्राप्त होता है। इस सूत्र के कुछ विशेष शब्दों का भावार्थ इस प्रकार है तंसि तारिसगंसी-इन शब्दों से यह ध्वनित होता है कि जो जीव जैसा पुण्यवान होता है उसके लिये वैसे ही शयनादि स्थान उपलब्ध होते हैं। वास-घरंसि--इस शब्द से यह भाव प्रकट हो रहा है कि पुण्यात्माओं के शयन करने का गृह और शय्या आदि सुगन्धित पदार्थों से वासित किये हुए होते थे, जैसे कि वृत्तिकार का कथन है कि पुण्यात्माओं की शय्या बढ़िया पुष्पों और कर्पूर, लवंग, चन्दन आदि पदार्थों की घूप से सुगन्धित की हुई होती थी जो मन और हृदय को शान्त एवं प्रसन्न करती है। __ सीहं सुमणे-इन शब्दों द्वारा सूचित किया गया है कि पुण्यशील जीवों की गर्भवती मातायें "सिंह" आदि के दर्शन रूप शुभ स्वप्न देखती हैं ।।२५।। ___ मूल-तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अन्नया कयाई तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेवारूवे दोहले पाउन्भूए-धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव जन्म-जीविय-फले जाओ णं णियस्स रन्नो उदरवली-मंसेहि सोहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च जाव पसन्नं च आसाएमाणीओ जाव परिभाएमाणीओ दोहलं. पविणेति ॥२६॥ छाया-ततः खलु तस्याश्चेलनायाः देव्या अन्यदा कदाचित् त्रिषु मासेषु बहुप्रतिपूर्णेषु अयमेतपो दोहदः प्रादुर्भूतः-धन्याः खलु ताः अम्बाः यावत् (तासां) जन्म-जीवित-फलं यः खल निजस्य राज्ञः उदर-बलिमांसः शूलैश्च तलितैश्च भजितश्च सुरां च यावत् प्रसन्नां च आस्वादयन्त्यो यावत् परिभाजयन्स्यो दोहदं प्रविणयन्ति-पूरयन्ति ॥२६॥ ... पदार्थान्वयः-तए णं-तत्पश्चात्, तीसे चेलणाए देवीए-उस चेलना देवी के, अन्नया
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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