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वर्ग - प्रथम ]
( ४४ )
[ निर्याबलिका
की पुत्री थी और राजा श्रेणिक की रानी थी। वह अत्यन्त सुकुमार और स्त्रियोचित नाना गुणों से युक्त थी । वह नानाविध सुखोपभोग करती हुई विचरती थी ।
उत्थानिका - अब सूत्रकार पुनः इसी विषय को स्पष्ट करते हुए कहते हैं
मूल - तए णं सा चेल्लणा देवी अन्नया कयाइं तंसि तारिसगंसी वासरंसि जाव सोहं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा, जहा पभावई, जाव सुमिण पाढगा पडिविसज्जित्ता, जाव चेल्लणा से वयणं पडिच्छित्ता जेणेव सर भवणे तेणेव अणुपविठ्ठा ॥ २५ ॥
छाया - ततः खलु सा चेलणा देवी अन्यदा कदाचित् तस्मिन्तादृशके वासगृहे यावत् सिहं स्वप्ने दृष्ट्रा खलु प्रतिबद्धा यथा प्रभावती, यावत् स्वप्न- पाठकाः प्रतिविसर्जिताः, यावत् चेलना तस्य वचनं प्रतीष्य यत्रैव स्वकं भवनं तत्रैवानुप्रविष्टा ॥ २५ ॥
पदार्थान्वयः - तते णं- तत्पश्चात्, सा चेल्लणा देवी - वह महादेवी चेलना, अन्यदा कया - किसी और समय, तंसि तारिसगंसी - पुण्यात्माओं के शयन करने योग्य, वासघरं सनिवास स्थान (राज-महल) में, जाव - यावत्, सीहं - सिंह को, सुमिणे पासित्ता णं - स्वप्न में देखकर, पडिबुद्धा - जाग गई, जहा पभावती - जैसे प्रभावती जांगी थी, जाव- यावत्, सुमिण पाढगा - स्वप्न फल के विशेषज्ञों को, पढिविसज्जित्ता विसर्जित करके, पच्छिता - वह चेलना स्वप्न विशेषज्ञों द्वारा भवणे—जहां पर उसका अपना निवास स्थान था, प्रवेश किया ||२५||
जाव चेलणा से वयणं कथित वचनों पर विश्वास करके, जेणेव सए तेणेव – वहीं जाकर अणुपविट्ठा — उसमें उसने
मूलार्थ-तत्पश्चात् महारानी चेलना देवी अन्य किसी समय पुण्यात्माओं के शयन करने योग्य अपने निवास स्थान में शय्या पर सोते हुए स्वप्न में सिंह को देख कर जागृत हुई - जैसे रानी प्रभावती जागी थी । यावत् - अर्थात् उसने राजा के पास जाकर स्वप्न की बात कही और राजा ने उसी समय स्वप्न फल के विशेषज्ञ विद्वानों को बुलवा कर उनसे स्वप्न फल जाना और उन्हें प्रीतिदान देकर विसर्जित किया और वेलना देवी उनके वचनों पर विश्वास करके अपने निवास स्थान में चली गई ||२५||
टीका - इस सूत्र में महारानी चेलना देवी के विषय में वर्णन किया गया है, जैसे कि वह बेलना देवी अपने राज-महल में जब शयन कर रही थी तो उसने स्वप्नावस्था में सिंह को देखा ।