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________________ निश्यावलिका ] [ वर्ग - प्रथम उत्थानका - क्या सभी अशुभ कर्मों के भार से दबे जीव अधोगति अर्थात् नरक में हो जाते हैं ? अब इस प्रश्न का उत्तर देते हुए शास्त्रकार कहते हैं ( ४१ ) मूल – एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं णयरे होत्था, रिद्धथिमिय समिद्धे । तत्थ णं रायगिहे नयरे सोणिए नाम राया होत्या महया० । तस्स णं सेणियस्स रन्नो नन्दा नामं देवी होत्या सोमाला जाव विहरइ ॥२२॥ छाया - एवं खलु गौतम ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहं नाम नगरो आसीत्, ऋद्धस्तिमित समृद्धम् । तत्र खलु श्र ेणिको नाम राजाभूत्, महा० । तस्य खलु श्र ेणिकस्य राज्ञो नन्दा नाम्नी देवी आसीत्, सुकुमारा यावत् विहरति ॥ २२ ॥ पदार्थान्वयः -- एवं खलु गोयमा - इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम, तेणं कालेणं - उस समय (चौथे आरे में जिस समय भगवान् महावीर विद्यमान थे), रायगिहे नामं - राजगृह नाम का, णयरे होत्था- नगर था, रिद्धत्थिमिय- समिद्धे - विशाल भवनों से युक्त सब प्रकार के भयों से रहित और धन-धान्य से परिपूर्ण था, तस्थ णं रायगिहे नयरे - उस राजगृह नगर में, सेणिए नामश्रेणिक नाम का, राया-- राजा होत्या-था, महया - जो कि सभी दृष्टियों से महान् था, तस्स -उस, सेणियस्स रन्नो-श्रेणिक राजा की, मन्दा नाम-नन्दा नाम की महारानी, होत्था - थी (जो), सोमाला - सुकुमार, जाव - यावत् अर्थात् पूर्व जन्मार्जित पुण्यों से नाना सुखों का उपभोग करती हुई, विहरति-- विचरण करती थी ||२२|| मूलार्थ — गौतम ! उस काल - उस समय ( चौथे आरे में जब भगवान् महावीर विद्यमान थे ) तब एक राजगृह नामक नगर था जो कि विशाल भवनों से युक्त, धनधान्य से परिपूर्ण और सब प्रकार के भयों से रहित था । उस नगर में श्रेणिक नामक राजा राज्य करता था जो कि सभी दृष्टियों से महान् था । उस राजा श्रेणिक की नन्दा नाम की महारानी थी जो कि अत्यन्त सुकुमार थी और जो पूर्व जन्मार्जित पुण्यों के कारण सब प्रकार के सुखों का उपभोग करती हुई विचरती थी । टीका - इस सूत्र में गणधर गौतम जी के उत्तर के विषय में वर्णन किया गया है। जैसे किगणधर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर से पहले प्रश्न किया था कि- "भगवन् ! कालकुमार किस कृत अशुभ कर्म के कारण नरक में उत्पन्न हुआ ?" इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् महावीर ने कथन किया है कि - " हे गौतम! अवसर्पिणी काल के चतुर्थ विभाग में एक राजगृह
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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