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बर्ग-प्रथ- ]
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[ निरयावलिका सूत्रम्
छाया.-काला खलु भदन्त ! कुमारः कीदृशै गैः कीदृशैरारम्भैः कीदृशैः समारम्भैः कीदृशैः आरम्भ-समारम्भः, कीदृशैः सम्भोगैः कीदृशैः भोग-सम्भोगैः, कीदृशेन वा अशुभ-कृतकर्मप्राग्भारेण कालमासे कालं कृत्वा चतुर्थ्यां पङ्कप्रभायां पृथिव्यां यावत् नैरिकतया उपपन्न। ॥२१॥
पदार्थान्धयः-भन्ते -भगवन् ! काले कुमारे-काल कुमार, गं - वाक्यालंकार में, के िसहि भोगेहिं-किस प्रकार के भोगों से, केरिसरहि आरम्भेहि-किस प्रकार के प्रारम्भों से, केरिसरहि समारम्भेहि-किस प्रकार के समारम्भों से, केरिसरहिं आरम्भ-समारम्भह-किस प्रकार के आरभ-समारम्भों से, केरिसएहि संभोगेहि-किस प्रकार के संभोगों से, केरिसएहि भोगसम्भोगेहिंकिस प्रकार के भोग-सम्भोगों से. केरिसएण वा और किस प्रकार के, असभकड कम्म पब्भारेणंकिए हुए अशुभ कर्मों के भार से या प्रभाव से, काल मासे कालं किच्चा-काल मास में काल करके, चउत्थोए-चौथी, पंकप्पभाए-पङ्कप्रभा नाम वाली, पुढवीए-पृथ्वी में, जाव-यावत्, नैर इयत्ताए-नारकी के रूप में, उववन्ने- उत्पन्न हुआ ॥२१॥
मूलार्थ-भगवन् ! वह काल कुमार हिंसा झूठ आदि सावद्य क्रिया रूप आरम्भ से, शस्त्रादि द्वारा प्राणियों के वध रूप समारम्भ से तथा किस प्रकार के आरम्भसमारम्भ से, किस प्रकार के भोगों (शब्दादि विषयों) से, किस प्रकार के संभोगों (तीत्र अभिलाषा-जनक विषय-विकारों) से और किस प्रकार के महारम्भ एवं परिग्रह रूप विषय-अभिलाषाओं के कारण और किस प्रकार के अशुभ कर्म समूह के कारण मृत्यु के समय मर कर चौथी पङ्कप्रभा नामक पृथ्वी पर स्थित नरक में उत्पन्न हुआ ॥२१॥
टोका- इस सूत्र में काल कुमार के नरक जाने के विषय में उल्लेख किया गया है। जैसे कि गणधर गौतम ने प्रश्न किया है- "हे भगवने ! किस प्रकार के आरम्भ समारम्भादि कर्मों से, वा किस प्रकार के भोग-संभोग से, किस प्रकार के अशुभ कर्मों के प्रभाव से वह काल कुमार मर कर चौथी पङ्कप्रभा नाम वाली पृथ्वी में स्थित नरक में उत्पन्न हुआ है ? ।
___ इस प्रश्न से यह भली भान्ति सिद्ध हो जाता है कि हिंसा, कर्म और विषय-आसेवन तथा अशुभ कर्म ये तीनों ही नरक की उत्पत्ति के कारण हैं, क्योंकि हिंसा मैथुन और अशुभ कर्म के कथन में १८ ही पापों का समावेश हो जाता है।
निष्कर्ष यह है कि अठारह पापों के आसेवन से जीव (भारी) गुरु होकर नरक में उत्पन्न होता है । इस स्थान पर आरम्भ से समारम्भ शब्द विशेष अर्थ का सूचक जानना चाहिए। इसी प्रकार भोग और संभोग के विषप में जानना चाहिए । अशुभ कृत कर्मों के भार से जीव अधोगति में चला जाता है ॥२१॥