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________________ निरावलिका सूत्रम् ] [ वर्ग - प्रथम लगी कि “हे भगवन् ! आपके वचन तथ्य, अवितथ्य और सन्देह - रहित हैं । आपका कथन सत्य है, जिस प्रकार आप कहते हैं, वह यथार्थ है ।" इस प्रकार कह कर वन्दना नमस्कार करके जिस रथ पर बैठ कर आई थी उसी रथ पर चढ़ कर अपने भवन की ओर चली गई । ( ३७ ) सूत्र-कर्ता ने यहां जो पांच पद दिए हैं वे काली देवी की उत्कृष्ट श्रद्धा के सूचक हैं । कारण कि उसकी भगवान महावीर के प्रति अनन्य श्रद्धा और भक्ति थी । वे पद निम्न प्रकार से हैं । " एवमेयं भंते! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते ! सच्चे णं एयमट्ठे जहेयं तुम्भे वदह ।” तथा इन पदों में विशिष्ट - विशिष्टतर विशिष्टतम श्रद्धा देखी जा रही है । अन्तिम पद द्वारा यह सूचित किया गया है - "हे भगवन् ! जो आप कहते हैं वही बात सत्य है । इसी प्रकार प्रत्येक प्राणीको उचित है कि वह भगवान् महावीर के निर्ग्रन्थ प्रवचन पर दृढ़ विश्वास रखे । उत्थानिका :- तदनन्तर क्या हुआ अब सूत्रकार इसी विषय में कहते हैं मूल - भंतेत्ति भगवं गोयमे जाव वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी-काणं भंते! कुमारे तिहि दंतिसहस्सेहिं जाव रहमुसलं संगामं संगामेमाणे चेडएणं रन्ना एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोविए समाणे कालमासे कालं किच्चा कहि उववन्ने ? ॥ १६ ॥ छाया - भदन्त ! इति भगवन्तं गौतमो यावद् वन्दते नमस्यन्ते वन्दित्वा नमस्थित्वा एवम - वादीत् — कालः खलु भदन्त ! कुमारः त्रिभिर्दन्तिसहस्रैर्यावद् रथमुशलं संग्रामं संग्रामयन् चेटकेन राज्ञा एकहत्यं कूटात्यं जीविताद् व्यपरोपितः सन् कालमासे कालं कृत्वा क्व उत्पन्नः ? पदार्थान्वयः — भंतेति — भगवन् ! इस प्रकार कह कर, भगवं - भगवान् महावीर को, गोय गौतम, जाव — यावत् वदति - वन्दना करते हैं, नमसति- नमस्कार करते हैं, वंदित्ता - नमसित्ता - वन्दना ! नमस्कार करके, एवं वयासी - इस प्रकार पूछने लगे- कालेणं भंते —- भगवन् वह काल कुमार, तिहि दंतिसहस्सेहि- तीन हजार हाथियों के साथ, जाव - यावत् रहमुसलं संगामं संगामेमाणे - रथ- मूशल संग्राम में युद्ध करते हुए, चेडएणं रन्ना - राजा चेटक के द्वारा, गाह - एक ही बाण के प्रहार से, कूडाहच्चं कूट की भान्ति (वज्र जैसे ), जीवियाओ - जीवन से, ववरोविए समाणे - रहित होने पर अर्थात् मर कर, काल मासे कालं किच्चा - मृत्यु समय आने पर जब मर गया तो वह), कहि उववन्ने —- कहां उत्पन्न हुआ ? मूलार्थ - महारानी काली देवी के चले जाने के बाद गौतम स्वामी भगवान् से पूछते हैं - भगवन् ! वह काल कुमार तीन-तीन हजार हाथियों, घोड़ों, रथों और तीन
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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